Thursday, May 26, 2016
मंदिर और विज्ञान
Best Regards,
Rahul
Monday, May 23, 2016
छांव
किसी ने मुझसे पूछा
जब हर कण कण मे वाहेगुरू है तो तुम गुरुद्वारे क्यूँ जाते हैं।
मैने जवाब दिया
हवा तो धूप में भी चलती है पर आनंद
छाँव मे बैठ कर मिलता है
वैसे ही वाहेगुरू सब तरफ है पर
आनंद गुरुद्वारे मे ही आता है
Best Regards,
Rahul
अजातशत्रु
दिन की चालाकियां रोशन है पलट जाती है
रात भोली है तेरी याद में कट जाती है।
वो जिसके वास्ते "ग्रुप सेल्फ़ी" मैं लेता हूँ
किनारा करके वो आहिस्ता से हट जाती है
कितने मासूम सवालात बिलख उठते हैं
जवाब देके सवालों को उलट जाती है
जब भी मौसम का कहर फेंकता हैं अंगारे
वो किसी फूल के साये में सिमट जाती है
एक लड़के ने कहा आँख दबाकर हंसकर
यार किस्मत में जो होती है वो पट जाती है।
-अजातशत्रु😜😜😜😜😜
एक जूते की अभिलाषा (अजातशत्रु)
चाह नहीं है विश्व सुंदरी के
पैरों में पहना जाऊं।
चाह नहीं शादी में चोरी
होकर साली को ललचाऊं।
चाह नहीं अब सम्राटों के
चरणों में रख्खा जाऊं।
चाह नहीं अब बड़े मॉल में
बैठ भाग्य पर इठलाऊं।
मजबूती से मुझे उठाकर
उनके मुंह देना तुम फेंक....
जो वोट मांगकर चले गए
अब बेच रहे है अपना देश।
Saturday, May 21, 2016
4 questions
चार उलटे सवाल + एक बोनस सवाल
कम से कम समय में जवाब देना है..
चलो आपका दिमाग देखते है..
पहला सवाल
*
आपने एक रेस में भाग लिया
और आपने दूसरे नंबर वाले रेसर को पीछे छोड़ दिया
बताओ आप किस नंबर पर पहुँच गए ..??
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अगर आपका जवाब है पहले नंबर पर..
तो ये गलत जवाब है
आप दूसरे नंबर वाले रेसर को पीछे छोड़कर उसके स्थान पर आ गए हो मतलब आपका स्थान दूसरा है..
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चलो दूसरा सवाल
कम से कम समय में जवाब देना है..
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आपने एक रेस में भाग लिया
और आपने सबसे पीछे वाले रेसर को पीछे छोड़ दिया
बताओ आप किस नंबर पर पहुँच गए ..??
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अगर आपका जवाब है सेकंड लास्ट नंबर पर..
तो ये गलत जवाब है
जो सबसे पीछे है उसे आप पीछे कैसे छोड़ सकते हो
आप उससे आगे हो तभी तो वो सबसे पीछे है
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चलो तीसरा सवाल
पहले से कम समय में जवाब देना है..
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उलझाने वाला गणित है आसान है पेन पेन्सिल और कैलकुलेटर का इस्तेमाल नहीं करना है सिर्फ दिमाग इस्तेमाल करना है..
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1000 ले. अब उसमे 40 जोड़े. अब उसमे 1000 और जोड़े. अब इसमें 30 जोड़े. अब इसमें 1000 और जोड़े. अब इसमें 20 और जोड़े अब इसमें 1000 और जोड़े. अब इसमें 10 और जोड़े बताओ कितना जोड़ हुआ..??
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क्या आपका उत्तर 5000 है..??
यह गलत है इसका जवाब है 4100.
अब पेन पेन्सिल और कैलकुलेटर का इस्तेमाल कर सकते हो..!!
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चलो चौथा सवाल
पहले से कम समय में जवाब देना है..
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मैरी के पिता की पांच बेटी है
1. टाना
2. टेने
3. टिनी
4. टोनो
बताओ पांचवी का क्या नाम होगा
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क्या जवाब है .. टुनु
नहीं पांचवी बेटी का नाम मैरी है ऊपर लिखा तो था..!!
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पांचवा आखिरी सवाल बोनस वाला
पहले से कम समय में जवाब देना है..
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एक गूंगे आदमी को ब्रश लेना है तो वह दुकानदार से ब्रश कैसे मांगेगा..??
जवाब - मुंह खोलके दांत दिखाकर ऊँगली से ब्रश की तरह इशारा करके ठीक है ना
सवाल ये नहीं है सवाल तो ये है की एक अँधा आदमी दुकानदार से चस्मे के लिए कैसे इशारा करेगा..??
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जवाब - अपने हाथों से आँखों पर चस्मे की तरह की आकिृति बनाकर.. है ना..
गलत जवाब
अँधा आदमी दुकानदार से बोलकर चस्मा मांगेगा वो गूंगा नहीं है..
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हँसना तो पड़ेगा यारा
अब सही सही बताना आपने कितने जवाब सही दिए..??
सिंहस्थ
(आवरण: Mohan Bairagi/ Sandip Rashinkar)
संपादकीय
संस्कृति की सत्ता अखंड और अविच्छेद्य सत्ता है किन्तु अलग अलग दृष्टियों से देखने पर वह परस्पर भिन्न दृष्टिगोचर होती है। भारतीयों ने इस अखंड संस्कृति की साधना के लिए अनादि काल से जो यात्रा की है उसे हम भारतीय संस्कृति के नाम से अभिहित करते हैं। सिंधु के आसपास के क्षेत्र से लेकर सुदूर पूर्व तक और हिमालय से लेकर दक्षिण में सेतु तक और यही नहीं काल प्रवाह में देश देशांतर तक फैले भारतवासियों ने जिन जीवन मूल्यों, विचारों, दृष्टियों और नियमों की संरचना, प्रसार और निरंतर उन्नयन किया है, उन्हीं का जैविक सुमेल है भारतीय संस्कृति। युग-युगीन उज्जयिनी अपने समूचे अर्थ में भारत की समन्वयी संस्कृति की संवाहिका है, जहाँ एक साथ कई छोटी-बड़ी सांस्कृतिक धाराओं के मिलन, उनके समरस होने और नवयुग के साथ हमकदम होने के साक्ष्य मिलते हैं। शास्त्र और विद्या की यह विलक्षण रंग-स्थली है। शास्त्रीय और लोक दोनों ही परम्पराओं के उत्स, संरक्षण और विस्तार में उज्जयिनी निरंतर निरत रही है।
भारत में विकसित अनेक दार्शनिक संप्रदायों और पंथों की प्रमुख केन्द्र रही है तीर्थभूमि उज्जयिनी। सुदूर अतीत से चली आ रही तीर्थाटन की परंपरा मनुष्य को व्यापक सृष्टि के साथ जोड़ने का कार्य करती है। तीर्थयात्रा बाहर के साथ भीतर की भी यात्रा है। इसीलिए पुराणकारों ने सत्य, क्षमा, दान, अन्तःकरण की शुद्धता से सम्पन्न मानसतीर्थ को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना है। यदि भीतर का भाव शुद्ध न हो तो यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, शास्त्र का अध्ययन आदि सब अतीर्थ हो जाते हैं। शैव, शाक्त, वैष्णव, जैन, बौद्ध, इस्लाम आदि विविध मतों की दृष्टि से उज्जयिनी का स्थान समूचे भारत के चुनिंदा तीर्थक्षेत्रों में सर्वोपरि रहा है। पुराणोक्त द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा इक्यावन शक्तिपीठों में से एक-एक उज्जैन में ही अवस्थित हैं। ऐसा संयोग वाराणसी, वैद्यनाथ जैसे कुछ तीर्थों के अतिरिक्त दुर्लभ है।
उज्जैन स्थित महाकाल वन शैव उपासना का प्राचीनतम क्षेत्र है। इसी तरह यहाँ शक्ति पूजा की परम्परा के सूत्र पुराण-काल के पूर्व से उपलब्ध होते हैं। प्राचीन गढ़कालिका क्षेत्र में उत्खनन से प्राप्त मृण्मूर्ति पर अंकित बालक लिए माँ से स्पष्ट होता है कि यहाँ मातृदेवी के रूप में शक्ति की उपासना का प्रचलन कम से कम 2200 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो गया था। उज्जयिनी की मुद्रा में अंकित दो स्त्री आकृति सहित अनेक पुरातत्त्वीय प्रमाण सिद्ध करते हैं कि किसी न किसी रूप में देवी की पूजा यहाँ प्रचलित थी। सुदूर अतीत से चली आ रही शैव, शाक्त, वैष्णव आदि से जुड़ी उपासना की परंपराएँ गुप्त एवं परमार काल तथा अद्यावधि नए नए रूपों में आकार लेती दिखाई देती हैं।
स्कन्दपुराण के अवन्तीखण्ड के अनुसार उज्जयिनी में प्रत्येक कल्प में देवता, तीर्थ और औषधि की बीज रूप (आदि रूप) वस्तुओं का पालन होता है। यह पुरी सबका संरक्षण करने में समर्थ है। इसलिए इसका नाम अवन्तीपुरी कहा गया।
देवतीर्थौषधिबीजभूतानां चैव पालनम्।
कल्पे कल्पे च यस्यां वै तेनावन्ती पुरी स्मृता।
सांस्कृतिक ऐक्य का बोध देने वाले पर्व कुंभ की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और उसमें उज्जैन के शिप्रा तट पर होने वाले सिंहस्थ महापर्व का अपना विशिष्ट स्थान है। पुराण प्रसिद्ध देवासुर संग्राम और समुद्र मंथन के अनंतर रत्नों का वितरण शिप्रा तट पर स्थित महाकाल वन में हुआ था। शिप्रा लौकिक और अलौकिक दोनों दृष्टियों से आनंदविधान करती है। स्कन्दपुराण के अनुसार स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण और देवतार्चा की दृष्टि से शिप्रा अत्यंत महिमाशाली है। विशिष्ट खगोलीय स्थिति में प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ होने वाला सिंहस्थ इन कार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर देता है।
भारत के धार्मिक-सांस्कृतिक उत्कर्ष के प्रतीक कुंभ पर्व ने पिछली शताब्दियों में अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद एक विराट लोक पर्व के रूप में अपने अस्तित्व को बनाए रखा है। इसमें समय समय पर परिष्कार और बदलाव के सूत्र भी प्रभावकारी रहे हैं। कभी यह शास्त्रोक्त तीर्थ-स्नान और दान-पुण्य का अवसर था। कालान्तर में इसमें विभिन्न सम्प्रदाय के साधु-सन्तों के अखाड़ों की भी सक्रिय भागीदारी होने लगी। मध्यकालीन संकट के दौर में इस पर्व के समक्ष कई चुनौतियाँ भी उभरीं, किन्तु आधुनिक काल तक आते-आते इसमें साधु संतों की व्यापक भागीदारी, राजकीय व्यवस्था और लोक विस्तार इन सभी आयामों में परिवर्तन के सूत्र दिखाई देते हैं। वतर्मान में इस महापर्व ने विश्वप्रसिद्ध विराट मेले का रूप धारण कर लिया है, जिसमें एक साथ लाखों की संख्या में तीथर्यात्रियों और पर्यटकों का सैलाब उमड़ता है। देश-विदेश में कुंभ मेले जैसा दूसरा उदाहरण नहीं है, जो एक साथ धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से प्रेरक हो और अपनी संपूर्णता में लोकमंगल एवं लोकरंजन को सिद्ध करता हो।
पर्वोत्सव परंपरा के मध्य सुमेरु का रूप लिए कुम्भ पर्व एक साथ कई कोणों से विमर्श का अवसर देता है। उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय ने सिंहस्थ से जुड़े विविध पक्षों को लेकर समग्र दृष्टिकोण से शोध की दिशा में सार्थक पहल की है। इसके अंतर्गत इतिहास, पुरातत्त्व, संस्कृति, साहित्य, समाज, दर्शन, पर्यावरण, अर्थतंत्र आदि के परिप्रेक्ष्य में अनुसंधानपरक अध्ययन का संकल्प लिया है। इसी तरह प्रबंधन, पर्यावरण, सूचना तकनीकी जैसे कई पक्षों से जुड़े संस्थान और अध्येता भी सिंहस्थ का गहन अध्ययन करेंगे। अक्षर वार्ता परिवार ने इस मौके पर मौन तीर्थ सेवार्थ फाउंडेशन एवं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के सहकार से सार्वभौमिक मूल्यों के प्रसार में साहित्य, संस्कृति और धर्म-अध्यात्म की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का संकल्प लिया है। उज्जयिनी का सिंहस्थ सर्वमंगल के शाश्वत संदेश को चरितार्थ करे, यही आत्मीय कामना है।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
प्रधान संपादक
ई मेल : shailendrasharma1966@gmail.com
डॉ मोहन बैरागी
संपादक
ई मेल : aksharwartajournal@gmail.com
अक्षर वार्ता : अंतरराष्ट्रीय संपादक मण्डल
प्रधान सम्पादक-प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, संपादक-डॉ मोहन बैरागी
संपादक मण्डल- डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'(नॉर्वे), श्री शेरबहादुर सिंह (यूएसए), डॉ रामदेव धुरंधर (मॉरीशस), डॉ स्नेह ठाकुर (कनाडा), डॉ जय वर्मा (यू के) , प्रो टी जी प्रभाशंकर प्रेमी (बेंगलुरु) , प्रो अब्दुल अलीम (अलीगढ़) , प्रो आरसु (कालिकट) , डॉ जगदीशचंद्र शर्मा (उज्जैन), डॉ रवि शर्मा (दिल्ली) , प्रो राजश्री शर्मा (उज्जैन), डॉ सुधीर सोनी(जयपुर), डॉ गंगाप्रसाद गुणशेखर (चीन), डॉ अलका धनपत (मॉरीशस)
प्रबंध संपादक- ज्योति बैरागी, सहयोगी संपादक- डॉ अनिल सिंह, मुम्बई, मोहसिन खान (महाराष्ट्र), डॉ उषा श्रीवास्तव (कर्नाटक), डॉ मधुकान्ता समाधिया(उ प्र), डॉ अनिल जूनवाल (म प्र ), डॉ प्रणु शुक्ला(राजस्थान), डॉ मनीषकुमार मिश्रा (मुंबई / वाराणसी ), डॉ पवन व्यास (उड़ीसा), डॉ गोविंद नंदाणीया (गुजरात)
कला संपादक- अक्षय आमेरिया, सह संपादक- एल एन यादव, डॉ भेरूलाल मालवीय, डॉ रेखा कौशल, डॉ पराक्रम सिंह, रूपाली सारये।
Friday, May 20, 2016
Mathematics
(Birth Day of Ramanujam),
See this Absolutely amazing Mathematics !
1 x 8 + 1 = 9
12 x 8 + 2 = 98
123 x 8 + 3 = 987
1234 x 8 + 4 = 9876
12345 x 8 + 5 = 98765
123456 x 8 + 6 = 987654
1234567 x 8 + 7 = 9876543
12345678 x 8 + 8 = 98765432
123456789 x 8 + 9 = 987654321
1 x 9 + 2 = 11
12 x 9 + 3 = 111
123 x 9 + 4 = 1111
1234 x 9 + 5 = 11111
12345 x 9 + 6 = 111111
123456 x 9 + 7 = 1111111
1234567 x 9 + 8 = 11111111
12345678 x 9 + 9 = 111111111
123456789 x 9 +10= 1111111111
9 x 9 + 7 = 88
98 x 9 + 6 = 888
987 x 9 + 5 = 8888
9876 x 9 + 4 = 88888
98765 x 9 + 3 = 888888
987654 x 9 + 2 = 8888888
9876543 x 9 + 1 = 88888888
98765432 x 9 + 0 = 888888888
Brilliant, isn't it?
And look at this symmetry :
1 x 1 = 1
11 x 11 = 121
111 x 111 = 12321
1111 x 1111 = 1234321
11111 x 11111 = 123454321
111111 x 111111 = 12345654321
1111111 x 1111111 = 1234567654321
11111111 x 11111111 = 123456787654321
111111111 x 111111111 = 12345678987654321
Brilliant isn't it?
Please Share This Wonderful Number Game with Friends.
Happy National Mathematics Day!!!!!!
💥💥💥
Wednesday, May 18, 2016
7 wonders of life
Very Beautiful Message...
*Seven Wonders of Life*
1. *Mother* - The first person to welcome you in this world.
2. *Father* - The first person to go through all the hardships just to see you smile.
3. *Sibling* - The first person to teach you the art of 'sharing and caring'.
4. *Friend* = The first person to teach you how to respect people with different opinions and viewpoints.
5. *Life partner* - The first person to make you realize the value of sacrifice and compromise.
6. *Your Children* - The first little person to teach you how to be selfless and think about others before yourself.
7. *Your Grandchildren* - The only persons who make you want to *live the life, all over again* ...
_Seven Wonders of Life_
Tuesday, May 17, 2016
सुंदरकाणड
🌹🌹
1 :- सुंदरकाणड का नाम सुंदरकाणड क्यों रखा गया ?
🌽🌽🌽🌽
हनुमानजी, सीताजी
की खोज में लंका गए थें और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी ! त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थें ! पहला सुबैल पर्वत, जहां कें मैदान में युद्ध हुआ था !
दुसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों कें महल बसें हुए थें ! और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका नीर्मित थी ! इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी !
इस काण्ड की यहीं सबसें प्रमुख घटना थी , इसलिए इसका नाम सुंदरकाणड रखा गया है !
🌽🌽🌽🌽🌽
2 :- शुभ अवसरों पर ही सुंदरकाणड का पाठ क्यों ?
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शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस कें सुंदरकाणड का पाठ किया जाता हैं ! शुभ कार्यों की शुरूआत सें पहलें सुंदरकाणड का पाठ करनें का विशेष महत्व माना गया है !
जबकि किसी व्यक्ति कें जीवन में ज्यादा परेशानीयाँ हो , कोई काम नहीं बन पा रहा हैं, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो , सुंदरकाणड कें पाठ सें शुभ फल प्राप्त होने लग जाते है, कई ज्योतिषी या संत भी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकाणड करनें की सलाह देते हैं !
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3 :- जानिए सुंदरकाणड का पाठ विषेश रूप सें क्यों किया जाता हैं ?
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माना जाता हैं कि सुंदरकाणड कें पाठ सें हनुमानजी प्रशन्न होतें है !
सुंदरकाणड कें पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती हैं !
जो लोग नियमित रूप सें सुंदरकाणड का पाठ करतें हैं , उनके सभी दुख दुर हो जातें हैं , इस काण्ड में हनुमानजी नें अपनी बुद्धि और बल सें सीता की खोज की हैं !
इसी वजह सें सुंदरकाणड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता हैं !
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4 :- सुंदरकाणड सें मिलता हैं मनोवैज्ञानिक लाभ ?
वास्तव में श्रीरामचरितमानस कें सुंदरकाणड की कथा सबसे अलग हैं , संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम कें गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती हैं , सुंदरकाणड ऐक मात्र ऐसा अध्याय हैं जो श्रीराम कें भक्त हनुमान की विजय का काण्ड हैं !
मनोवैज्ञानिक नजरिए सें देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड हैं , सुंदरकाणड कें पाठ सें व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती हैं , किसी भी कार्य को पुर्ण करनें कें लिए आत्मविश्वास मिलता हैं !
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5 :- सुंदरकाणड सें मिलता है धार्मिक लाभ ?
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सुंदरकाणड कें लाम सें मिलता हैं धार्मिक लाभ हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पुर्ण करनें वालीं मानी गई हैं , बजरंगबली बहुत जल्दी प्रशन्न होने वालें देवता हैं , शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताएं गए हैं , इन्हीं उपायों में सें ऐक उपाय सुंदरकाणड का पाठ करना हैं , सुंदरकाणड कें पाठ सें हनुमानजी कें साथ ही श्रीराम की भी विषेश कृपा प्राप्त होती हैं !
किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकाणड कें पाठ सें दुर हो जाती हैं , यह ऐक श्रेष्ठ और सरल उपाय है , इसी वजह सें काफी लोग सुंदरकाणड का पाठ नियमित रूप सें करते हैं , हनुमानजी जो कि वानर थें , वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए वहां सीता की खोज की , लंका को जलाया सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए , यह ऐक भक्त की जीत का काण्ड हैं , जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है , सुंदरकाणड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं , इसलिए पुरी रामायण में सुंदरकाणड को सबसें श्रेष्ठ माना जाता हैं , क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता हैं , इसी वजह सें सुंदरकाणड का पाठ विषेश रूप सें किया जाता हैं
जय श्री राम !
जय जय जय सीयाराम !
सीता राम सीता राम सीता राम !
जय श्री राम भक्त हनुमानजी नमो नमः !
Friday, May 13, 2016
चलो पीहर
अगर बच्चो की बुक्स पस्ती में देदी हो📚
नयी किताब आ गई हो📖
बच्चो के रिजल्ट आ गए हो, तो📋
🚌चलो पीहर चलो हर🚌
🌶🌶मिर्ची, हल्दी, धनिया भर दिए हो,
जीरा, राई, अजमा साफ कर दिए हो,
गेहू अगर भर दिए हो तो,
🚌चलो पीहर चलो पीहर🚌
केर का आचार दल दिया हो,
साबूदाने की चकरी हो गई हो,
ननन्द रहकर जा चुकी हे या,💃🏻
भाभी रहे कर आ चुकी हे तो,
🚌चलो पीहर चलो पीहर🚌
🍟🍔गरम गरम खाने को,🍔🍟
🍷🍷ठंडा ठंडा पिने को,🍷🍷
🙇🏻देर से रात में सोने को,🙇🏻
देर से सुबह उठने को,
🎂माँ के हाथ का खाने को,🍭🍔
👰🏻भाभी का प्यार पाने को,👰🏻
👦🏻भाई से बात करने को,😭
🙇🏻भतीजो से मस्ती करने को,💃🏻
👭बच्चों के साथ बच्चा बनने को,
अपनी मनमानी करने को,😉
🚘 चलो पीहर चलो पीहर✈
छुंदा और केर का आचार डालने तक वापस आयेंगे🍶
साडे 11 महीने ससुराल में रहने के लिए😭
पीहर से 15 दिन में प्यार का डॉस लाने को 😘😘
15 दिन के पेट्रोल से ससुराल में साडे11 महीने हम ओरतो की गाड़ी भागती हे 🚌🏄🏻
🙋🏻💏इस लिए चलो पीहर चलो पीहर 🚌 ✈ 😘😘
Dedicate to all women
Random
उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने ...
और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे ..
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✴ पायल हज़ारो रूपये में आती है, पर पैरो में पहनी जाती है
और.....
बिंदी 1 रूपये में आती है मगर माथे पर सजाई जाती है
इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं.
〰〰〰〰〰〰
✴ एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,
और
जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते....
〰〰〰〰〰〰〰〰
✴ नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,
मिठी बात करने वाले तो चापलुस भी होते है।
इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े।
और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड़ जाया करते है...
〰〰〰〰〰〰〰
✴ अच्छे मार्ग पर कोई व्यक्ति नही जाता पर बुरे मार्ग पर सभी जाते है......
इसीलिये दारू बेचने वाला कहीं नही जाता ,
पर दूध बेचने वाले को घर-घर
गली -गली , कोने- कोने जाना पड़ता है ।
〰〰〰〰〰〰〰〰
✴ दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि पानी तो नही डाला ?
पर दारू मे खुद हाथो से पानी मिला-मिला कर पीते है ।
〰〰〰
✴ वाह रे दुनिया और दुनिया की रीत ।
💞🎶💞🎶💞💞🎶💞n
👇Very nice line 👌
इंसान की समझ सिर्फ इतनी हैं
कि उसे "जानवर" कहो तो
नाराज हो जाता हैं और
"शेर" कहो तो खुश हो जाता हैं!
Wednesday, May 11, 2016
Fwd: [Hindi-Forum] उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा UPAMITI-BHAVA-PRAPANCA KATHA Original Sanskrit text by Siddharshi Gani
From: "manishymodi@gmail.com [Hindi-Forum]" <Hindi-Forum@yahoogroups.com>
Date: May 11, 2016 at 12:07:10 AM PDT
To: <Hindi-Forum@yahoogroups.com>
Subject: [Hindi-Forum] उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा UPAMITI-BHAVA-PRAPANCA KATHA Original Sanskrit text by Siddharshi Gani
Reply-To: Hindi-Forum@yahoogroups.com
|| ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथाय नमः ||
|| Auṃ Hrīṃ ŚrīPārśvanāthāya Namaḥ ||
Jay Jinendra
उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा
UPAMITI-BHAVA-PRAPANCA KATHA
Original Sanskrit text by Siddharshi Gani
[Sanskrit text not included in this edition]
Hindi Translation by Mahopadhyaya Vinayasagara
2014 22 x 14 cm 1100 pages [2 kilos]
Hardcover Rs. 2500
http://www.navelgazing.net/2016/05/upamiti-bhava-prapanca-katha-original.html
The Upamiti-Bhava-Prapanca Katha is an allegorical work, comprising of 16000 verses composed in the anushtupa metre. It was written by Siddharshi Gani in the 10th century, CE.
It is an outstanding text, even by the standards of Classical Sanskrit literature.
Prof Hermann Jacobi described it as being the first allegorical novel found in Indian literature. It precedes both, John Bunyan's 'The Pilgrim's Progress' (17th century) and the less well known 'The Pilgrimage of the Life of Man' (14th century) by Guillaume de Deguileville; by several centuries.
Introduction
This is a metaphorical text where the chief protagonist experiences the trials and tribulations of worldly life in a state of awareness. The author has personified abstract concepts and made them comprehensible to the lay reader.
The enduring strength of this novel is its relevance even today. Each of the travails that Anusundara undergoes, are as real today as they were a thousand years ago. It is human nature to feel anger, arrogance, artifice and avarice and this is as true in the Microsoft Age as it was in the Stone Age.
The Plot
This allegorical novel moves on two levels, the temporal and the spiritual.
At the temporal level, it is the story of the the key protagonist Cakravarti Anusundara, and what he undergoes in his worldly sojourn. Used to living in the fast lane, Anusundara experiences the full gamut of human emotions and has to endure the most extreme vicissitudes.
At the spiritual level, the reader finds that the travails of human life are merely an expression of the dynamic interaction between various life forms. The reader is invited to form his/her own conclusions vis-a-vis the viability of a life spent in the pursuit of material wealth.
The author is skilful enough to ensure that his reader stays on the roller coaster of emotions, exulting in Anusundara's victories and grieving his losses. Simultaneously, he inculcates the message of awareness, insight and detachment, through which the seeker may attain freedom from the cycle of rebirth and death.
This novel traces the worldly journey of Anusundara through several births until he attains moksha.
Previous Translations
This unparalleled text has been translated more than once.
In Hindi by Pandit Nathuram Premi in 1924
In German by Professor Willibald Kirfel in 1924
In Gujarati by Pandit Motilal Girdharlal Kapadia in 1925-26
This Edition
This edition was edited and skilfully translated into Hindi by Mahopadhyaya Vinayasagara, a traditional Sanskrit scholar. Unfortunately, for reasons of brevity, this edition does not carry the original Sanskrit text and features only the Hindi translation.
Availability
We are proud to present this excellent work to our readers. We strongly recommend this work to at all those who love reading, whether as a means of self-improvement or for pleasure.
This book is available at our bookstore and through mail order.
At Hindi Granth Karyalay, we have been delighting readers since 1912. We are committed to make the best writings on Jainism, Hinduism, Buddhism and South Asian Studies available all over the world. Hence, beside our own publications, we stock and sell books from all the major publishers of India. At our bookstore, which is the oldest in Mumbai, we stock thousands of books on various topics such as religion, philosophy, Indology, literature, poetry, dramatics, art, self-help, yoga, children's literature, alternative medicine, music, cinema and sports.
We carry books in Hindi, English, Sanskrit, Prakrit, Pali, Apabhramsha, Gujarati, Urdu, Kannada and Marathi. We also carry huge stocks of graphic novels, children's literature, popular English novels, etc. We wish to be a one-stop bookstore that caters to different tastes.
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Best regards,
Manish Yashodhar Modi
हिन्दी ग्रन्थ कार्यालय
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मैंने दहेज़ नहीं माँगा
साहब मैं थाने नहीं आउंगा,
अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,
माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था,
सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,
*पर यकीन मानिए साहब ,*
*" मैंने दहेज़ नहीं माँगा "*
मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।
चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो,
उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो।
पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,
*यकीन मानिए साहब,*
*" मैंने दहेज़ नहीं माँगा "*
परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं,
कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही,
मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में,
कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में,
हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को,
नहीं मांने तो याद रखोगे मेरी मार को,
बस बूढ़े माता पिता का ही मोह, न छोड़ पाया मैं अभागा,
*यकींन मानिए साहब,*
*" मैंने दहेज़ नहीं माँगा "*
फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का,
शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का,
एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया,
न रहुगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया।
बस मुझसे लड़ कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,
2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची,
माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देगे,
क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें।
परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा,
*यकींन माँनिये साहब ,*
*" मैंने दहेज़ नहीं माँगा "*
जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया,
झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया।
बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया,
क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
घर में सब हैरान, सब परेशान थे,
अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,
मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी।
आखिरकार तमका मिला हमे दहेज़ लोभी होने का,
कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने सजोने का।
बुलाने पर थाने आया हूँ, छूप कर कहीं नहीं भागा,
*लेकिन यकींन मानिए साहब ,*
*" मैंने दहेज़ नहीं माँगा "*
😪 *झूठे दहेज के मुकदमों के कारण ,*
*पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति…* 🙏🏻
*दहेज की ये कविता कई घरो की हकीकत है*
Monday, May 9, 2016
शिवपुराण
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माँ बहुत झूठ बोलती है.....
सुबह जल्दी जगाने को,
सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
थाल भर खिलाकर,
तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो,
मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी,
कमजोरी की सूजन बोलती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल,
नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
......माँ बहुत झूठ बोलती है......
उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
......माँ बहुत झूठ बेलती है........
अक्षय तृतीया
-🙏 आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था ।
🙏-महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था
🙏-द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था ।
🙏- कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था ।
🙏- कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था ।
🙏-सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था ।
🙏- प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है ।
🙏- बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है ।
🙏- इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था ।
🙏- अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है
मैं परशुराम बोल रहा हूँ...
================
मैं, तुम्हारा पूर्वज,
परशुराम बोल रहा हूँ...
अपने जीवन के कुछ,
रहस्य खोल रहा हूँ ..../१/
माँ रेणुका, पिता जमदग्नि
ये सब जानते हैं
विष्णु का छठा अवतार
मुझे सब मानते हैं .../२/
मैं भृगु वंश में जन्मा
पितामह त्रिकालदर्शी थे
भृगुसंहिता के प्रणेता
दिव्यदृष्टि वाले महर्षि थे,,/३/
पांच भाइयों में सबसे छोटा
घर भर का दुलारा था
माँ- बाप ने 'राम' कहा
जग ने परशुराम पुकारा था.../४/
मेरे आगमन का ध्येय विशेष
मैं विष्णु का आवेशावतार था
मिथ्या दंभ से धरा तप्त थी
मेरा कर्म उद्दंडियों का संहार था.../५/
नानी के छल के कारण
मैं ब्राह्मण कुल में जन्मा था
ब्राह्मण होकर भी क्षत्रियत्व
मेरी रगों में पनपा था.../६/
परम विदुषी माँ रेणुका ने
सर्वप्रथम मुझे ज्ञान दिया था
आज्ञापालन और प्रकृति प्रेम का
बेशकीमती संज्ञान दिया था../७/
विश्वामित्र मेरे परम गुरु
ऋचीक आश्रम विद्यास्थली रहा
शिव ने सिखाया रण मुझे
इसीलिए तो मैं महाबली रहा../८/
महामनाओं की कृपा मुझ पर
अनंत और अनवरत रही
दिव्य शस्त्र और दिव्य मंत्र मिले
तन पर अभेद परत रही.../९/
विद्युदभि नामक विशाल फरसा
श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच,
शिव गुरु ने प्रदान किया था
स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु
के साथ साथ महादेव ने मुझे
सहृदयता से विद्यादान दिया था../१०/
चक्रतीर्थ में मेरे कठिन तप ने
विष्णु को प्रसन्न कर दिया था
उन्होंने मुझे कल्पान्त पर्यन्त
भूलोक पर रहने का वर दिया../११/
क्षणिक कमजोरी के वशीभूत
माँ ने एक पाप किया था
परपुरुष पर मोहित होने का
पिता ने बहुत संताप किया था../१२/
पितृ आदेश से मैंने फिर
माँ-भ्राताओं का वध कर डाला
आज्ञा पालन से अभिभूत पिता ने
मुझे स्नेहिल बाहों में भर डाला../१३/
कोमल हृदय पिता ने मुझे
बहुमूल्य वरदान दिया था
मेरी याचना पर माँ-भ्राताओं को
फिर से जीवन दान दिया था.../१४/
हैहय वंशाधिपति कार्त्तवीर्यअर्जुन
सहस्त्रार्जुन कहलाया था
दत्तात्रेय को तप से प्रसन्न कर
हजार बाहुओं का वर पाया था.../१५/
बड़ी शक्ति ने सहस्त्रार्जुन को
स्वेच्छाचारी बना दिया था
उसने वो हर काम किया
जिसके लिए उसे मना किया था .../१६/
सहस्त्रार्जुन के आश्रम प्रवास पर
पूज्य पिता ने उपकार किया था
सैन्यबल सहित राजा का
भरपूर अतिथि सत्कार किया था ../१७/
कामधेनु कपिला के प्रताप से
धनधान्य भरपूर था
आश्रम का वैभव देखकर
राजा का दर्प चकनाचूर था .../१८/
कपिला को हड़प जाने को
सहस्त्रार्जुन ललचाया था
चोरी जैसे नीच कर्म पर
'प्रजापालक' उतर आया था .../१९/
इस बलात हरण का तब मैंने
पुरजोर प्रतिकार किया था
फरसे से हजार भुजाएं काट डाली
लुटेरे का संहार किया था ---/२०/
मेरी अनुपस्थिति में राजपुत्रों ने
ध्यानस्थ पिता की हत्या कर दी
इस कायरतापूर्ण कुकर्म ने मन में
ऐसे क्षत्रियों के प्रति जुगुप्सा भर दी .../२१/
माँ रेणुका सती हो गईं
पल में मैंने माँ- बाप खो दिए थे
इस अपूरणीय क्षति ने
भावी हाहाकार के बीज बो दिए थे ../२२/
मेरे जीवन का एकमेव ध्येय
मातृभूमि का उपचार करना था
फरसे के प्रहार से पापियों का
पापयुक्त दूषित जीवन हरना था.../२३/
इक्कीस बार भू को मैंने
पापीयों से विमुक्त किया था
जगत वन्दनीय धरा को
आततायी रक्त से सिक्त किया था ../२४/
अहा!! कैसा रक्तिम समय वह
कितना प्रचंड दौर था
दसों दिशाओं में त्राहि त्राहि का
खूब मर्मान्तक शोर था .../२५/
पांच सरोवर दूषित रक्त से
मैंने सराबोर किये थे
सहस्त्रार्जुन सुतों के रक्त से
पिता के श्राद्ध घनघोर किये थे .../२६/
अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर
अपनी शक्ति का जग को भान दिया
सप्तद्वीप युक्त भूमंडल
फिर महर्षि कश्यप को दान दिया .../२७/
महर्षि ऋचीक प्रकट हुए
उन्होंने मुझे शांत किया था
शस्त्र त्याग कर फिर मैंने
महेंद्र पर्वत पर विश्राम किया था .../२८/
मुझसे शस्त्र विद्या सीखने
कईं विभूतियाँ आती रहीं
भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसी हस्तियाँ
मुझसे ज्ञान पाती रहीं .../२९/
पशु-पक्षियों का और मेरा
आपस में बहुत प्यार था
उनके संग संततियों सा मेरा
प्रेमपूर्ण भावुक व्यवहार था .../३०/
काव्य से प्रेम था मुझे मैं,
शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र का रचनाकार रहा
मेरे द्वारा रचित परशुराम गायत्री
इच्छित फल पाने का अचूक आधार रहा.../३१/
स्त्री स्वातंत्र्य का पक्षधर मैं
मैंने बहु पत्नी विवाह पर आघात किया
अनसूया लोपामुद्रा के सहयोग से
नारी-जागृति-अभियान का सूत्रपात किया .../३२/
आज अक्षय तृतीया है
तुम मेरा जन्मदिन मनाओगे
मेरी जीवन गाथा
तुम सभी को सुनाओगे..../३३/
मेरा आशीष है तुमको
ज्ञानवान बनो विद्यादान करो
सुसुप्त पड़ी हैं शक्तियां
अपनी क्षमता की पहचान करो ..
जय परशुराम
Thursday, May 5, 2016
गुरू
होनी भी टल जायेगी, रख गुरु में विश्वास ।।
💐🙏💐
जितने आये कष्ट सब, कर लेना मंजूर।
लेकिन गुरु के द्वार से, कभी न होना दूर ।
💐🙏💐
बिना गुरु के तर सका, हुआ न कोई शूर।
फैल रहा चारों तरफ, मेरे गुरु का नूर ।।
💐🙏💐
गुरु चरणों में शिष्य के, दुःख कट जाते आप ।
पास न उसके आ सके, जग के तीनों ताप ।।
💐🙏💐
अपने गुरु से प्रीत जो, करता है निष्काम।
गुरु चरणों में ही बसे, उसके चारों धाम ।।
💐🙏💐
जितने भी तू कष्ट दे, सब मुझको स्वीकार।
लेकिन गुरु-सेवा विमुख, मत करना कर्तार ।।
💐🙏💐
Monday, May 2, 2016
Random
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!
( मैं इसका रचयिता नहीं हूँ। किसी और ने मुझे भेजा था।)