कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ चाह कर भी, समय अभाव अथवा संस्कृत के ज्ञान की कमी के कारण नहीं कर पाते हैं। उनके लिए कलिपावनावतार युगद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में ६ चौपाई और १ दोहे में समाहित किया है।
जय जय जय गिरिराज किशोरी। जय महेश मुख चंद्र चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव बेद नहिं जाना॥
भव भव विभव पराभव कारिनि। बिश्व बिमोहनि स्वबश बिहारिनि॥
दो०-पतिदेवता सुतीय महँ, मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस शारदा शेष॥
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनि त्रिपुरारि पियारी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
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