१)
इस जीवन में सुख दुःख दोनों, दोनों को चुप हो सह लेना ।
मन की बात न कहना जग से, अपने मन से ही कह लेना ॥
कितना दुःख है तेरे मन में, अगन जलन है शीत पवन में ।
जान न पाएं ये जग वाले, नाव अकेले ही खे लेना ॥
(२)
धरती डोले उमड़े सागर, हिलना मत, हो जाना पत्थर ।
आँधी अंधड़ तूफानों में, आग लगे अरमानों में गर ॥
टूट पड़े आकाश मगर तुम, बने हिमालय अटल प्रलय सम ।
बहने देना दुःख मत करना मन की मन में ही रख लेना ॥
(३)
जीवन पांच तत्व का पुतला यह काया है कच्ची माटी ।
इस जग का पथ बड़ा कठिन है ये दुनियाँ है दुर्गम घाटी ॥
युग युग से इंसान चला है, रुका नहीं गिर पुनः उठा है ।
गिरने पर अफ़सोस न करना, दोष स्वयं को फिर दे लेना ॥
(४)
यह दुनिया संघर्ष भूमि है, कदम कदम पर समस्या ।
निराकरण के लिए जरूरी मनसा वाचा कर्म तपस्या ॥
तब जीवन की खरी कसौटी हवा गयी फिर कभी न लौटी ।
गया वक्त फिर हाथ न आता इसीलिए जाने मत देना ॥
(५)
यह मानव बुलबुला नीर का अवधि काल का कौन भरोसा ।
क्षण भंगुर है क्षण को कब, कब नहीं पिए बिन पानी कोसा ॥
पता नहीं है कौन ठिकाना, सदा मृत्यु का आना जाना ।
जीवन मीत समान समझना नहीं बैर इस उससे लेना ॥
(६)
मोहर लगी दानें दानें पर, सांस सांस पर पहरे दारी ।
सबकी सामलात खेती है, सब की ही है हिस्से दारी ॥
जो बोना बस उसे काटना, उसमें भी दो भाग बांटना ।
लिखा कर्म का कभी न मिटता, जो सिर आये झुक कर लेना ॥
(७)
दुःख सुख यश अपयश जो भी हो, पाप पुण्य हो भला बुरा हो ।
जीवन मृत्यु धूप छाया हो, ताप शीत हो प्यार गिला हो ॥
सब समान कुछ भेद न पाया सभी यहां है सधा सधाया ।
विधना ने जो लिखा भाग्य में मान कर्म फल सादर लेना ॥
(८)
दुःख सुख केवल मन का भ्रम है, भ्रम में काल व्याल सा तम है ।
विपदा और सम्पदा दोनों , कोई नहीं किसी से कम हैं ॥
मन के भीतर गाँठ न देना, छप्पन व्यंजन चना चबेना ।
आशा और निराशा दोनों का ही भार वहन कर लेना ॥
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