Saturday, April 9, 2016

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ .

बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं....

रहता हूं किराये की काया में...

रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं....

मेरी औकात है बस मिट्टी
जितनी...

बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...

जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन...

फिर भी इसकी खूबसूरती
पर इतराता हूं....

मुझे पता हे मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगा...

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ......🙏🙏

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