Saturday, October 29, 2016

नरक चतुर्दशी

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                               *रूप चतुर्दशी*
नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
पुराणों की कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यतनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीनदान और पूजा का विधान है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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नरक चतुर्दशी

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                               *रूप चतुर्दशी*
नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
पुराणों की कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यतनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीनदान और पूजा का विधान है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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नरक चतुर्दशी

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                               *रूप चतुर्दशी*
नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
पुराणों की कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यतनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीनदान और पूजा का विधान है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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नरक चतुर्दशी

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                               *रूप चतुर्दशी*
नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
पुराणों की कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यतनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीनदान और पूजा का विधान है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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नरक चतुर्दशी

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नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।
पुराणों की कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। इन कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा अतः आप ही कोई उपाय करें। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यतनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीनदान और पूजा का विधान है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राज की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

कविता अटलजी की है , अतिशय सुंदर ..... 💐💐

जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई  में  भी  मेले  हों,
आनंद की आभा होती है 
*उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।*

       जब प्रेम के दीपक जलते हों
       सपने जब सच में बदलते हों,
       मन में हो मधुरता भावों की
       जब लहके फ़सलें चावों की,
       उत्साह की आभा होती है 
       *उस रोज़ दिवाली होती है ।*

जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
*उस रोज़ दिवाली होती है ।*

       जब तन-मन-जीवन सज जाएं
       सद्-भाव  के बाजे बज जाएं,
       महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
      मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
      तृप्ति  की  आभा होती  है
      *उस रोज़ 'दिवाली' होती है .*।               - 

--अटलबिहारी वाजपेयी

Monday, October 24, 2016

चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है

चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं ।
************************************

जब चाँद का धीरज छूट गया ।
वह रघुनन्दन से रूठ गया ।
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है ।
स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है ।

तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है ।
हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है ।
सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है ।
चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है ।

जिस वक़्त याद में सीता की ,
तुम चुपके - चुपके रोते थे ।
उस वक़्त तुम्हारे संग में बस ,
हम ही जागते होते थे ।

संजीवनी लाऊंगा ,
लखन को बचाऊंगा ,.
हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखरा कर,
मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त ।
तुमने हनुमान को गले से लगाया ।
मगर हमारा कहीं नाम भी न आया ।

रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था ।
तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था ।
मैंने भी आकाश से था पृथ्वी पर झाँका ।
गगन के सितारों को करीने से टांका ।

सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया।
सारे नगर को दुल्हन सा सजाया ।
इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया ।
बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया ।
क्यों तुमने अपना विजयोत्सव
अमावस्या की रात को मनाया ?

अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मानते ।
आधे अधूरे ही सही हम भी शामिल हो जाते ।
मुझे सताते हैं , चिड़ाते हैं लोग ।
आज भी दिवाली अमावस में ही मनाते हैं लोग ।

तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है ?
जो कुछ खोता है वही तो पाता है ।
जा तुझे अब लोग न सतायेंगे ।
आज से सब तेरा मान ही बढाएंगे ।
जो मुझे राम कहते थे वही ,
आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे

Saturday, October 22, 2016

Evolutionary view of दशावतार

"Mom, I am a genetic scientist. I am working in the US on the evolution of man. Theory of evolution, Charles Darwin, have you heard of him? " Vasu asked. 
 
His Mother sat down next to him and smiled, "I know Darwin, Vasu. I also know that what you think he discovered is old news in India."

" Yeah sure Mom!" Vasu said with sarcasm.

"Well if you are too smart then listen to this, " his Mother countered." Have you heard of Dashavatar? The ten avatars of Vishnu?" Vasu nodded. 

"Then let me tell you what you and Mr. Darwin don't know. Listen carefully- The first avatar was the Matsya avatar, it means the fish. That is because life began in the water. Is that not right?" Vasu began to listen with a little more attention.

"Then came the Kurma Avatar, which means the tortoise, because life moved from the water to the land. The amphibian. So the Tortoise denoted the evolution from sea to land. 

Third was the Varaha, the wild boar, which meant the wild animals with not much intellect, you call them the Dinosaurs, correct? " Vasu nodded wide eyed.

"The fourth avatar was the Narasimha avatar, half man and half animal, the evolution from wild animals to intelligent beings. 

Fifth the Waman avatar, the midget or dwarf, who could grow really tall. Do you know why that is? Cause there were two kinds of humans, Homo Erectus and the Homo Sapiens and Homo Sapiens won that battle." Vasu could see that his Mother was in full flow and he was stupefied.

"The Sixth avatar was Parshuram, the man who wielded the axe, the man who was a cave and forest dweller. Angry, and not social. 

The seventh avatar  was Ram, the first thinking social being, who laid out the laws of society and the basis of all relationships.

 The eight avatar was Krishna, the statesman, the politician, the lover who played the game of society and taught how to live and thrive in the social structure. 

The Ninth avatar, the Buddha, the man who rose from Narasimha and found man's true nature. The nature of Buddha, he identified man's final quest of enlightenment. 

And finally, my boy, will come Kalki, the man you are working on. The man who will be genetically supreme."

Vasu looked at his Mother speechless. "This is amazing Mom, how did you.. This makes sense!"

"Yes it does Vasu! We Indians knew some amazing things just didnt know how to pass it on scientifically. So made them into mythological stories. 

Mythology makes sense. Its just the way you look at it - Religious or Scientific. 

Friday, October 21, 2016

घरेलू इलाज

👉 *आंवला*
किसी भी रूप में थोड़ा सा
आंवला हर रोज़ खाते रहे,
जीवन भर उच्च रक्तचाप
और हार्ट फेल नहीं होगा।

👉 *मेथी*
मेथीदाना पीसकर रख ले।
एक चम्मच एक गिलास
पानी में उबाल कर नित्य पिए।
मीठा, नमक कुछ भी नहीं डाले।
इस से आंव नहीं बनेगी,
शुगर कंट्रोल रहेगी और
जोड़ो के दर्द नहीं होंगे
और पेट ठीक रहेगा।

👉 *नेत्र स्नान*
मुंह में पानी का कुल्ला भर कर
नेत्र धोये।
ऐसा दिन में तीन बार करे।
जब भी पानी के पास जाए
मुंह में पानी का कुल्ला भर ले
और नेत्रों पर पानी के छींटे मारे, धोये।
मुंह का पानी एक मिनट बाद
निकाल कर पुन: कुल्ला भर ले।
मुंह का पानी गर्म ना हो इसलिए
बार बार कुल्ला नया भरते रहे।

भोजन करने के बाद गीले हाथ
तौलिये से नहीं पोंछे।
आपस में दोनों हाथो को रगड़ कर
चेहरा व कानो तक मले।
इससे आरोग्य शक्ति बढ़ती हैं।
नेत्र ज्योति ठीक रहती हैं।

👉 *शौच*
ऐसी आदत डाले के नित्य
शौच जाते समय दाँतो को
आपस में भींच कर रखे।
इस से दांत मज़बूत रहेंगे,
तथा लकवा नहीं होगा।

👉 *छाछ*
तेज और ओज बढ़ने के लिए
छाछ का निरंतर सेवन
बहुत हितकर हैं।
सुबह और दोपहर के भोजन में
नित्य छाछ का सेवन करे।
भोजन में पानी के स्थान पर
छाछ का उपयोग बहुत हितकर हैं।

👉 *सरसों तेल*
सर्दियों में हल्का गर्म सरसों तेल
और गर्मियों में ठंडा सरसों तेल
तीन बूँद दोनों कान में
कभी कभी डालते रहे।
इस से कान स्वस्थ रहेंगे।

👉 *निद्रा*
दिन में जब भी विश्राम करे तो
दाहिनी करवट ले कर सोएं। और
रात में बायीं करवट ले कर सोये।
दाहिनी करवट लेने से बायां स्वर
अर्थात चन्द्र नाड़ी चलेगी, और
बायीं करवट लेने से दाहिना स्वर
अर्थात सूर्य स्वर चलेगा। 

👉 *ताम्बे का पानी*
रात को ताम्बे के बर्तन में
रखा पानी सुबह उठते बिना
कुल्ला किये ही पिए,
निरंतर ऐसा करने से आप
कई रोगो से बचे रहेंगे।
ताम्बे के बर्तन में रखा जल
गंगा जल से भी अधिक
शक्तिशाली माना गया हैं।

👉 *सौंठ*
सामान्य बुखार, फ्लू, जुकाम
और कफ से बचने के लिए
पीसी हुयी आधा चम्मच सौंठ
और ज़रा सा गुड एक गिलास पानी में
इतना उबाले के आधा पानी रह जाए।
रात को सोने से पहले यह पिए।
बदलते मौसम, सर्दी व वर्षा के
आरम्भ में यह पीना रोगो से बचाता हैं।
सौंठ नहीं हो तो अदरक का
इस्तेमाल कीजिये।

👉 *टाइफाइड*
चुटकी भर दालचीनी की फंकी
चाहे अकेले ही चाहे शहद के साथ
दिन में दो बार लेने से
टाइफाईड नहीं होता।

👉 *ध्यान*
 हर रोज़ कम से कम 15 से 20
मिनट मैडिटेशन ज़रूर करे।

👉 *नाक*
रात को सोते समय नित्य
सरसों का तेल नाक में लगाये।
हर तीसरे दिन दो कली लहसुन
रात को भोजन के साथ ले।
प्रात: दस तुलसी के पत्ते और
पांच काली मिर्च नित्य चबाये।
सर्दी, बुखार, श्वांस रोग नहीं होगा।
नाक स्वस्थ रहेगी।

👉 *मालिश*
स्नान करने से आधा घंटा पहले
सर के ऊपरी हिस्से में
सरसों के तेल से मालिश करे।
इस से सर हल्का रहेगा,
मस्तिष्क ताज़ा रहेगा।
रात को सोने से पहले
पैर के तलवो, नाभि,
कान के पीछे और
गर्दन पर सरसों के तेल की
मालिश कर के सोएं।
निद्रा अच्छी आएगी,
मानसिक तनाव दूर होगा।
त्वचा मुलायम रहेगी।
सप्ताह में एक दिन पूरे शरीर में
मालिश ज़रूर करे।

👉 *योग और प्राणायाम*
 नित्य कम से कम आधा घंटा
योग और प्राणायाम का
अभ्यास ज़रूर करे।

👉 *हरड़*
हर रोज़ एक छोटी हरड़
भोजन के बाद दाँतो तले रखे
और इसका रस धीरे धीरे
पेट में जाने दे।
जब काफी देर बाद ये हरड़
बिलकुल नरम पड़ जाए
तो चबा चबा कर निगल ले।
इस से आपके बाल कभी
सफ़ेद नहीं होंगे,
दांत 100 वर्ष तक निरोगी रहेंगे
और पेट के रोग नहीं होंगे। 

👉 *सुबह की सैर*
सुबह सूर्य निकलने से पहले
पार्क या हरियाली वाली जगह पर
सैर करना सम्पूर्ण स्वस्थ्य के लिए
बहुत लाभदायक हैं।
इस समय हवा में प्राणवायु का
बहुत  संचार रहता हैं।
जिसके सेवन से हमारा पूरा शरीर
रोग मुक्त रहता हैं और हमारी
रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती हैं।

👉 घी खाये मांस बढ़े,
  अलसी खाये खोपड़ी,
     दूध पिये शक्ति बढ़े,
 भुला दे सबकी हेकड़ी।

👉तेल तड़का छोड़ कर
       नित घूमन को जाय,
       मधुमेह का नाश हो
     जो जन अलसी खाय ।।
🌾🌾🌾🌾🌻🌺

रामचरितमानस* की चौपाइयाँ

*रामचरितमानस* की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे _*प्रभु श्रीराम*_ आप के जीवन को सुखमय बना देगे।

_*1. रक्षा के लिए*_
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||

_*2. विपत्ति दूर करने के लिए*_
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||

_*3. *सहायता के लिए*_
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||

_*4*. *सब काम बनाने के लिए*_
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||

_*5*. *वश मे करने के लिए*_
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||

_*6*. *संकट से बचने के लिए*_
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||

_*7*. *विघ्न विनाश के लिए*_
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||

_*8*. *रोग विनाश के लिए*_
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||

_*9. ज्वार ताप दूर करने के लिए*_
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||

_*10. दुःख नाश के लिए*_
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||

_*11. खोई चीज पाने के लिए*_
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||

_*12. अनुराग बढाने के लिए*_
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||

_*13. घर मे सुख लाने के लिए*_
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||

_*14. सुधार करने के लिए*_
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||

_*15. विद्या पाने के लिए*_
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||

_*16. सरस्वती निवास के लिए*_
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||

_*17. निर्मल बुद्धि के लिए*_
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||

_*18. मोह नाश के लिए*_
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||

_*19. प्रेम बढाने के लिए*_
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||

_*20. प्रीति बढाने के लिए*_
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||

_*21. सुख प्रप्ति के लिए*_
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||

_*22. भाई का प्रेम पाने के लिए*_
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||

_*23. बैर दूर करने के लिए*_
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||

_*24. मेल कराने के लिए*_
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||

_*25. शत्रु नाश के लिए*_
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||

_*26. रोजगार पाने के लिए*_
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||

_*27. इच्छा पूरी करने के लिए*_
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||

_*28. पाप विनाश के लिए*_
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||

_*29. अल्प मृत्यु न होने के लिए*_
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||

_*30. दरिद्रता दूर के लिए*_
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना |

_*31. प्रभु दर्शन पाने के लिए*_
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||

_*32. शोक दूर करने के लिए*_
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||

_*33. क्षमा माँगने के लिए*_
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||

Tuesday, October 18, 2016

प्रार्थना

प्रभु से सुंदर प्रार्थना  :

 ! मेरे तीन अपराधो को माफ़ करो। 

यह जानते हुए भी कि- 

1... तुम सर्वव्यापी हो, पर मैँ तुम्हेँ हर जगह खोजता हूँ यह मेरा पहला अपराध है.... . 

2... तुम शब्दोँ से परे हो, मैँ तुमको शब्दों से बाँधता हूँ, एक नाम देता हूँ। यह मेरा दूसरा अपराध है.. . 

3... तुम सर्वज्ञाता हो, मैँ तुम्हेँ अपनी इच्छाएँ बताता हूँ, उन्हेँ पूरा करने को कहता हूँ। यह मेरा तीसरा अपराध है..🙏🌹🙏
 

रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय

*🔆🌹रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय🌹🔆*
➖➖➖➖➖➖➖➖
*🙏🏻मित्रों अवश्य जाने और अपने आसपास सभी को बतायें भी:-*

ये जानकारी मैंने मात्र इसलिए साझा की है जिससे आप रामायण को आसानी से और अच्छे से समझ सकें।

🌹दशरथ – रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल प्रदेश के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या।

🌹कौशल्या – दशरथ की बङी रानी, राम की माता।

🌹सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुधन की माता।

🌹कैकयी - दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता।

🌹सीता – जनकपुत्री, राम की पत्नी।

🌹उर्मिला – जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी।

🌹मांडवी – जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी।
 
🌹श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न की पत्नी।

🌹राम – दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति।

🌹लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति।

🌹भरत – दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति।

🌹शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासुर के संहारक।

🌹शान्ता – दशरथ की पुत्री, राम बहन।

🌹बाली – किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयों का बल।

🌹सुग्रीव – बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई।

🌹तारा – बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओं में स्थान।

🌹रुमा – सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी।

🌹अंगद – बाली तथा तारा का पुत्र।

🌹रावण – ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।

🌹कुंभकर्ण – रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र।

🌹कुंभिनसी – रावण तथा कूंभकर्ण की बहन, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) की पुत्री।

🌹विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा-राका-मालिनी के पति।

🌹विभीषण – विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त।

🌹पुष्पोत्कटा (केकसी) – विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता।

🌹राका – विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता।

🌹मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी, खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता।

🌹त्रिसरा – विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति।

🌹शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-दूसन एवं त्रिसरा की बहन, विंध्य क्षेत्र में निवास।

🌹मंदोदरी – रावण की पत्नी, तारा की बहन, पंचकन्याओ मे स्थान।

🌹मेघनाद – रावण का पुत्र इंद्रजीत, लक्ष्मण द्वारा वध।

🌹दधिमुख – सुग्रीव के मामा।

🌹ताड़का – राक्षसी, मिथिला के वनों में निवास, राम द्वारा वध।

🌹मारीची – ताड़का का पुत्र, राम द्वारा वध (स्वर्ण मर्ग के रूप मे )।

🌹सुबाहू – मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध।

🌹सुरसा – सर्पो की माता।

🌹त्रिजटा – अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग।

🌹प्रहस्त – रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध में मृत्यु।

🌹विराध – दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध।

🌹शंभासुर – राक्षस, इन्द्र द्वारा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा।

🌹सिंहिका – लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकड़कर खाती थी।

🌹कबंद – दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धड़ में घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकड़ा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमें गाड़ दिया।

🌹जामबंत – रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति।

🌹नल – सुग्रीव की सेना का वानरवीर।

🌹नील – सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी।

🌹नल और नील – सुग्रीव सेना में इंजीनियर व राम सेतु निर्माण मे महान योगदान। (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे "रामसेतु" के आर्किटेक्ट इंजीनियर)

🌹शबरी – अस्पृश्य जाती की रामभक्त, मतंग ऋषि के आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार।

🌹संपाती – जटायु का बड़ा भाई, वानरों को सीता का पता बताया।

🌹जटायु – रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार।

🌹गृह – श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था।

🌹हनुमान – पवन के पुत्र, राम भक्त, सुग्रीव के मित्र।

🌹सुषेण वैध – सुग्रीव के ससुर।

🌹केवट – नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी।

🌹शुक्र-सारण – रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये।

🌹अगस्त्य – पहले आर्य ऋषि जिन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गये।

🌹गौतम – तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट।

🌹अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित, राम ने शाप मुक्त किया, पंचकन्याओं में स्थान।

🌹ऋण्यश्रंग – ऋषि जिन्होंने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कटाया था।

🌹सुतीक्ष्ण – अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि।

🌹मतंग – ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी।

🌹वसिष्ठ – अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के गुरु।

🌹विश्वमित्र – राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी।

🌹शरभंग – एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम।

🌹सिद्धाश्रम – विश्वमित्र के आश्रम का नाम।

🌹भरद्वाज – बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे, माँ-निषाद' वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था।

🌹सतानन्द – राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि।

🌹युधाजित – भरत के मामा।

🌹जनक – मिथिला के राजा।

🌹सुमन्त्र – दशरथ के आठ मंत्रियों में से प्रधान।

🌹मंथरा – कैकयी की मुंह लगी दासी, कुबड़ी।

🌹देवराज – जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था।

🌹अयोध्या  – राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी, बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौड़ी, नगर के चारों ओर ऊँची व चौड़ी दीवारें व खाई थीं। राजमहल से आठ सड़के बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।

*🙏🏻मित्रों मैंने ये सारे तथ्य कई जगह से संग्रह किये हैं त्रुटि हो सकती है। अतः यदि कहीं कोई त्रुटि या कमी हो अवश्य अवगत करायें।*  

Monday, October 17, 2016

हिंदू धर्म

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर    2. भीम    3. अर्जुन
4. नकुल।      5. सहदेव

( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )

यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।

वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन      2. दुःशासन   3. दुःसह
4. दुःशल        5. जलसंघ    6. सम
7. सह            8. विंद         9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष       11. सुबाहु।   12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण।   14. दुर्मुख     15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण     17. शल       18. सत्वान
19. सुलोचन   20. चित्र       21. उपचित्र
22. चित्राक्ष     23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद।       26. दुर्विगाह  27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द।        32. उपनन्द   33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा    35. सुवर्मा    36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु   38. महाबाहु  39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग  42. भीमबल
43. बालाकि    44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण       47. कुण्डधर  48. महोदर
49. चित्रायुध   50. निषंगी     51. पाशी
52. वृन्दारक   53. दृढ़वर्मा    54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति  56. अनूदर    57. दढ़संघ 58. जरासंघ   59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा   62. उग्रसेन     63. सेनानी
64. दुष्पराजय        65. अपराजित 
66. कुण्डशायी        67. विशालाक्ष
68. दुराधर   69. दृढ़हस्त    70. सुहस्त
71. वातवेग  72. सुवर्च    73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी   75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि    78. क्रथन। 79. कुण्डी 
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर  82. वीरबाहु
83. अलोलुप  84. अभय  85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय    87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी।     89. विरवि
90. चित्रकुण्डल    91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि    93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान     95. दीर्घबाहु
96. सुजात।         97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी        99. विरज
100. युयुत्सु

( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )

"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-

ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई। 

ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।

ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी 

ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। 

ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा 
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85 
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद


अधूरा ज्ञान खतरना होता है।

33 करोड नहीँ  33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।

कोटि = प्रकार। 
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,

कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।

हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...

कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-

12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!

8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।

11 प्रकार है :- 
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।

एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।

कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी 

अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है
तो इस जानकारी को अधिक से अधिक
लोगो तक पहुचाएं। ।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है

This is very good information for all of us ... जय श्रीकृष्ण ...

अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ ......



अपनी भारत की संस्कृति 
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये. 
खासकर अपने बच्चो को बताए 
क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...

📜😇  दो पक्ष-

कृष्ण पक्ष , 
शुक्ल पक्ष !

📜😇  तीन ऋण -

देव ऋण , 
पितृ ऋण , 
ऋषि ऋण !

📜😇   चार युग -

सतयुग , 
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग , 
कलियुग !

📜😇  चार धाम -

द्वारिका , 
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी , 
रामेश्वरम धाम !

📜😇   चारपीठ -

शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम ) 
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) , 
शृंगेरीपीठ !

📜😇 चार वेद-

ऋग्वेद , 
अथर्वेद , 
यजुर्वेद , 
सामवेद !

📜😇  चार आश्रम -

ब्रह्मचर्य , 
गृहस्थ , 
वानप्रस्थ , 
संन्यास !

📜😇 चार अंतःकरण -

मन , 
बुद्धि , 
चित्त , 
अहंकार !

📜😇  पञ्च गव्य -

गाय का घी , 
दूध , 
दही ,
गोमूत्र , 
गोबर !

📜😇  पञ्च देव -

गणेश , 
विष्णु , 
शिव , 
देवी ,
सूर्य !

📜😇 पंच तत्त्व -

पृथ्वी ,
जल , 
अग्नि , 
वायु , 
आकाश !

📜😇  छह दर्शन -

वैशेषिक , 
न्याय , 
सांख्य ,
योग , 
पूर्व मिसांसा , 
दक्षिण मिसांसा !

📜😇  सप्त ऋषि -

विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज , 
गौतम , 
अत्री , 
वशिष्ठ और कश्यप! 

📜😇  सप्त पुरी -

अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी , 
माया पुरी ( हरिद्वार ) , 
काशी ,
कांची 
( शिन कांची - विष्णु कांची ) , 
अवंतिका और 
द्वारिका पुरी !

📜😊  आठ योग - 

यम , 
नियम , 
आसन ,
प्राणायाम , 
प्रत्याहार , 
धारणा , 
ध्यान एवं 
समािध !

📜😇 आठ लक्ष्मी -

आग्घ , 
विद्या , 
सौभाग्य ,
अमृत , 
काम , 
सत्य , 
भोग ,एवं 
योग लक्ष्मी !

📜😇 नव दुर्गा --

शैल पुत्री , 
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा , 
कुष्मांडा , 
स्कंदमाता , 
कात्यायिनी ,
कालरात्रि , 
महागौरी एवं 
सिद्धिदात्री !

📜😇   दस दिशाएं -

पूर्व , 
पश्चिम , 
उत्तर , 
दक्षिण ,
ईशान , 
नैऋत्य , 
वायव्य , 
अग्नि 
आकाश एवं 
पाताल !

📜😇  मुख्य ११ अवतार -

 मत्स्य , 
कच्छप , 
वराह ,
नरसिंह , 
वामन , 
परशुराम ,
श्री राम , 
कृष्ण , 
बलराम , 
बुद्ध , 
एवं कल्कि !

📜😇 बारह मास - 

चैत्र , 
वैशाख , 
ज्येष्ठ ,
अषाढ , 
श्रावण , 
भाद्रपद , 
अश्विन , 
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष , 
पौष , 
माघ , 
फागुन !

📜😇  बारह राशी - 

मेष , 
वृषभ , 
मिथुन ,
कर्क , 
सिंह , 
कन्या , 
तुला , 
वृश्चिक , 
धनु , 
मकर , 
कुंभ , 
कन्या !

📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग - 

सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल , 
ओमकारेश्वर , 
बैजनाथ , 
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ , 
त्र्यंबकेश्वर , 
केदारनाथ , 
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !

📜😇 पंद्रह तिथियाँ - 

प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी , 
पंचमी , 
षष्ठी , 
सप्तमी , 
अष्टमी , 
नवमी ,
दशमी , 
एकादशी , 
द्वादशी , 
त्रयोदशी , 
चतुर्दशी , 
पूर्णिमा , 
अमावास्या !

📜😇 स्मृतियां - 

मनु , 
विष्णु , 
अत्री , 
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना , 
अंगीरा , 
यम , 
आपस्तम्ब , 
सर्वत ,
कात्यायन , 
ब्रहस्पति , 
पराशर , 
व्यास , 
शांख्य ,
लिखित , 
दक्ष , 
शातातप , 
वशिष्ठ !

नैवेद्य

*NAIVEDYAM: WILL GOD EAT OUR OFFERINGS?*

Here is a very good explanation about Neivedyam to God. Will God come and eat our offerings?Many of us could not get proper explanation from our elders.An attempt is made here. 

A Guru-Shishya conversation:

The sishya who doesn't believe in God, asked his Guru thus:
"Does God accept our 'neivedhyam'(offerings)? If God eats away the 'prasadham' then from where can we distribute it to others? Does God really consume the 'prasadham', Guruji?"

The Guru did not say anything. Instead, asked the student to prepare for classes. 

That day, the Guru was teaching his class about the 'upanishads'. He taught them the 'mantra': "poornamadham, poornamidham, ......poornasya poornaadaaya...." and explained that: 'every thing came out from "Poorna or Totality." (of ishavasya upanishad).

 Later, everyone was instructed to practice the mantra by-heart. So all the boys started praciting. After a while, the Guru came back and asked that very student who had raised his doubt about Neivedyam to recite the mantra without seeing the book,  which he did. 

Now the Guru gave a smile and asked this particular shishya who didn't believe in God: 'Did you really memorize everything as it is in the book? The shishya said: "yes Guruji, I've recited whatever is written as in the book. 

The Guru asked: "If you have taken every word into your mind then how come the words are still there in the book? He then explained:

"The words in your mind are in the SOOKSHMA STHITI (unseen form). The words in the book are there in the STOOLASTHITI (seen).

 God too is in the 'sooksma sthiti'. The offering made to Him is done in 'stoola sthiti'. Thus, God takes the food in 'sookshmam', in sookshma stithi. Hence the food doesn't become any less in quantity.

While GOD takes it in the "sookshma sthiti",  we take it as 'prasadam' in 'sthoola sthiti'.

Hearing this the sishya felt guilty for his disbelief in God and surrendered himself to his GURU.
🙏💐🔔

नमक

[✔✔दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देता है एक चुटकी नमक
वास्तुशास्त्र में नमक को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। नमक के अलग-अलग इस्तेमाल से घर से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मानसिक शांति, सेहत, सुख-समृद्धि और पैसे के मामले में नमक की भूमिका अहम है। वास्तु के अनुसार यदि नमक का सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए, तो एक चुटकी नमक ही काफी है दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए...।

➖एक चुटकी नमक का कमाल...
यदि आप आए दिन बीमार रहते हैं। घर में परिवार के सदस्यों के बीच आए दिन झगड़े होते हैं। हर तरफ  नकारात्मकता नजर आती है, तो नमक वाले पानी से पूरे घर में पोंछा लगाएं। बस पोंछे वाले पानी में एक चुटकी काला नमक मिलाएं, फिर देखें इसका कमाल। कुछ दिनों में इसका असर देखने को मिल जाएगा। यदि हर दिन संभव ने हो, तो मंगलवार को जरूर नमक को पोंछा लगाएं। इस उपाय से न सिर्फ घर की नकारात्मकता दूर होगी, घर में सकारात्मक एनर्जी आएगी। परविार के सदस्य बीमार भी नहीं पड़ते हैं। सौभाग्य के दरवाजे खुलेंगे।

➖किसमें रखें नमक...➖

आप जरा अपने घर में यह देखिए कि जिस बर्तन मतें नमक रखा जा रहा है, वह किस चीज से बना है। स्टील यानी लोहे से बने बर्तन में नमक कभी नहीं रखना चाहिए। वास्तु में ऐसी मान्यता है कि नमक को हमेशा कांच के जार में भरकर रखना चाहिए। साथ ही इसमें एक लौंग डाल दें, तो फिर सोने पे सुहागा... इससे घर में सुख-समृद्धि तो रहती ही है। पैसों की भी कभी कमी महसूस नहीं होती। धन का फ्लो बना रहता है।

➖नमक मानसिक शांति भी देता है...➖

यदि आपका मन हर बेचैन रहता है। न तो घर में मन लगता, न बाहर, ना ही ऑफिस में...आप लाख कोशिश करते हैं, फिर मानसिक शांति नहीं मिल रही होती है। ऐसी समस्या से निजात पाने के लिए नमक का उपाय रामबाण का काम करता है। इस उपाय में भी एक चुटकी नमक कमाल करता है। जी हां, नहाते समय समय पानी में एक चुटकी नमक मिला लें और उससे स्नान करें। वास्तु विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से मानसिक बेचैनी कम हो जाती है। तन-मन हमेशा तरोताजा रहता है। आलस्य से छुटकारा मिल जाता है।

➖डॉक्टर है नमक...
यदि घर में कोई लंबे समय से बीमार चल रहा हो, तो उसके बिस्तर के पास कांच की बोतल में नमक भरकर रखें और हर महीने इसे बदल दें। वास्तु शास्त्र के मुताबिक, ऐसा करने से बीमार व्यक्ति की सेहत में काफी सुधार आ सकता है। यह उपाय तब तक करते रहें, जब तक वह व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ ने हो जाए।

➖पहाड़ी नमक का कमाल...➖

कौन व्यक्ति नहीं चाहेगा कि उसके घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहे, लेकिन हम देखते हैं कि व्यक्ति हर तरह से सम्पन्न होता है, लेकिन बावजूद इसके उसके घर में सुख आ अभाव रहता है। शांति भंग हो जाती है। असल में वास्तुदोष होने से घर में नकारात्मकता प्रवेश होता है और व्यक्ति परेशान रहता है। इससे छुटकारा पाने के लिए या वास्तुदोष खत्म करने के लिए इसमें एक नमक का उपाय बहुत कारगर साबित हो सकता है। बाजार में पहाड़ी नमक भी मिलता है। इसे लाकर अपने घर के एक कोने में रख दें। आप कुछ ही में महसूस करेंगे कि घर की सारी नकारात्मकत एनर्जी दूर हो जाएगी। परिवार के लोग खुश रहने लगेंगे। घर में सुख-शांति फैल जाएगी।

➖नमक को लेकर ये दो सावधानियां...➖

प्राचीन मान्यता है कि यदि आप नमक सीधे किसी के हथेली में रखकर देते हैं, तो इससे उस व्यक्ति के साथ आपका झगड़ा हो सकता है। इसलिए इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि नमक कभी किसी को हाथ में न दें, बल्कि चम्मच से बर्तन के जरिए दें। इसके अलावा नमक को कभी जमीन में न गिरने दें। नमक को कभी बेकार भी मत होने दें। वास्तु के अनुसार, यदि नमक जमीन पर सीधे गिरता है, तो यह माने लें कि आप सीधे अपने दुर्भाग्य को दावत दे रहे हैं।
।🌺🌞🌞🌺

Saturday, October 15, 2016

स्तुति एवं राम भजन

हल्दी



*पानी में हल्दी मिलाकर पीने से होते है यह 7 फायदें*.....
🙏👏🌹

1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है. सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है.

2. रोज यदि आप हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है. यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है.
🙏👏🌹
3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है. हल्दी के पानी में टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है. हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं.
🙏👏🌹
4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए. हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है. जिससे हर्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
🙏👏🌹
5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है जिससे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है. हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौर्दय को बढ़ाते हैं.
🙏👏🌹
6. शरीर में किसी भी तरह की सजून हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें. हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असाहय दर्द को ठीक कर देता है. सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी.
🙏👏🌹
7. कैंसर खत्म करती है हल्दी. हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है. हल्दी एंटी.कैंसर युक्त होती है. यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीएगें तो आपको भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें.👏🙏

लेखक:-
🌹योगीराज अभिषेक योगी (गुरु  जी )🌹
        नंबर:-8868080169
                  संस्थापक
  🌎 डिवाइन वे ऑफ लाइफ 🌎
                   संस्था
   www.divinewayoflife.org
🙏

Friday, October 14, 2016

शरद पूर्णिमा

🌷 *शरद पूर्णिमा* 🌷
🙏🏻 आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर, शनिवार को है। जानिए शरद पूर्णिमा की रात इतनी खास क्यों है, इससे जुड़े विभिन्न पहलू व मनोवैज्ञानिक पक्ष-
🌙 *चंद्रमा से बरसता है अमृत*
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है। कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है।
🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था रास*
शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। शरद पूर्णिमा को रासलीला की रात भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। 
🍚 *खीर खाने का है महत्व*
शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

🌷 *आरोग्य व पुष्टि देनेवाली खीर* 🌷
🍚 शरद पूनम ( 15 अक्टूबर 2016 शनिवार ) की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो | पानी बाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर बन गयी | जो दूध को जलाकर तथा रात को बादाम, पिस्ता आदि डाल के खीर खाते हैं उनको तो बीमारियाँ का सामना करना पड़ता है | उस खीर को महीन सूती कपड़े, चलनी या जाली से अच्छी तरह ढककर चन्द्रमा की किरणों में पुष्ट होने के लिए रात्रि ९ से १२ बजे तक रख दिया | बाद में जब खीर खायें तो पहले उसे देखते हुए २१ बार 'ॐ नमो नारायणाय |' जप कर लें तो वह औषधि बन जायेगी | इससे वर्षभर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति की सुरक्षा व प्रसन्नता बनी रहेगी |
🌙 इस रात को हजार काम छोडकर कम-से-कम १५ मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा लो तो हरकत नहीं | छत या मैदान में विद्युत् का कुचालक आसन बिछाकर चन्द्रमा को एकटक देखना | अगर मौज पड़े तो आप लेट भी सकते हैं | श्वासोच्छ्वास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, नि:संकल्प नारायण में विश्रांति पायें |
🌻🌹🍀🌺🌸🍁💐🙏🏻

Earth view with the state of wind

Thursday, October 13, 2016

दिल में न हो जुर्रत तो मुहब्बत नहीं मिलती

दिल में न हो जुर्रत तो मुहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे ख़फ़ा है
हर एक से अपनी भी तबियत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वह कौन है जिस से तेरी सूरत नहीं मिलती

हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फ़ुरसत नहीं मिलती
~ निदा फ़ाज़ली

Dil mein na ho jurrat to muhabbat nahiin miltii
khairaat men itn
​ii
 badii daulat nahiin miltii

kuchh log yuun hii shah
​a​
r mein hamse khafaa hain
har ek se apnii bhii tabiyat nahiin miltii

dekhaa thaa jise maine koii aur thaa shaayad
vah kaun hai jis se terii suurat nahiin miltii

hanste hue chehron se hai baazaar k
​ii
 z
​ii
nat
rone ko yahaan vaise bhii 
​f
ursat nahiin miltii
~ Nida Fazli

If there is no boldness in your heart, you will not get love
Such great wealth is never gifted away

Some people in the city are unhappy with me just like that
I too cannot mingle with everyone

The one I had seen was perhaps someone else
Who is it that you do not resemble?

Only smiling faces can light up the marketplace
In any case, who has the leisure to cry?

______

Urdu Ghazal by Nida Fazli

Baba and the dacoit













Wednesday, October 12, 2016

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य

🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रख कर
🙏�  जय श्री राम   🙏

Sri M

Sri M in a past life was a young yogi who meditated in Himalayas with Mahavtar Babaji as his teacher. An old Muslim fakir once came with great difficulty in his old age to be his disciple. Yogi (Sri M) got angry at the "old, meat eating barbarian". The old fakir said he will not live if the yogi does not accept him. Yogi said it is fine, you can die. The fakir died. When Mahavtar Babaji found out, he told the yogi that his unkindness had wiped out his austerities. He should give up this body and live like this Fakir to know what he had suffered. Babaji said then he will send a teacher ( Sri M's teacher) to get him back.


So the yogi was born as Sri M


Listen with absolute attention, like this is being said for the first time. Don't compare with past knowledge - has this been said before. Know it in the now. Self is realized in the now not in the past.


Self realization cannot come from memories


Everything we do - work, worship, meditation, knowledge - the four paths that Gita talks about, only prepare us for self realization


Karm (work), Bhakti (worship), Gyan (knowledge), Kriya (meditation)


All are paths


They purify us, get us ready, clean the ground


And one day, in one lifetime, self realization comes


Once it comes, it is always with you


Sri M

Gaokao

Amitabh everywhere...

Amitabh everywhere....

Amitabh Bachhan is probably one who has touched every aspect of the life through his movies whether through likes n similarity or by opposites.

On his 74th birthday, an attempt with his 75 movies.

See the fun...

Color
Amitabh Bachchan is in black, he is in khaakee n then he is in pink as well

People
he is in hum n in akela....

Number of occurrence
He is in kabhi kabhi n he is in silsila as well

Family
he is in family, he is in parvarish n then in lawaris as well....

Patriotism
he is in deshpremi n in faraar....

Freedom
he was in main azaad hoon n he was in janjeer, bandhe haath n also in geerftaar

Justice
he was in andha kanoon n also in adaalat....

Obligation
he was in namak halaal n then in namak haraam....

Profession
he was in saudagar, jaadugar n then in baghban as well....

Mannerism
he was in jameer n in besharam....

Communication
he was in nishabd n in pukaar....

Power
he was in shahenshah n in ghulami...

Magic stories
he was in aladdin n in ajooba as well...

God
he was in bhootnath n in god tussi great ho....

Belief in god
he was in khuda gawah n also in naastik....

Taste
he was in cheeni kum n then in garam masala....

Luck
he was in naseeb, he was in sanjog n in mukaddar ka sikandar also...

Freedom fight
he was in inquilab n in satyagrah....

Parents
he was in baabul n in Paa....

Self esteem
he was in abhimaan n in shaan....

Senses
he was in aankhe n in jabaan....

Voice
he was in chupke chupke n toofaan....

Promises
he was in kasme waade n in hera pheri as well...

No gender bias
he was in amar akbar anthony n in ganga jamuna sarswati too....

Friendship
He was in yaaraana, he was in dostaana as well

Mahabharat
he was in aaj ka arjun n in eklavya too....

Achievement
He was in bemisaal, he was in mahaan n then he was in majboor as well

Maths
He was in teen n then he was in do aur do paanch as well

Playing cards
He was in satte pe satta, n then he was in teen patti as well

Target
he was in manzil, in aakhari raasta and then in deewar as well..

Test
he was in kasauti n in lakshya as well ...

Fire
he was in sholey, he was in agneepath n he was in mashaal as well

N finally, Emotions
he was in krodh, n in aanand as well..



रावण

आजकल सोशल मिडिया पर एक ट्रेंड बहुत तेजी से चल पड़ा है , रावण के बखान..!! वो एक प्रकांड पंडित था जी....उसने माता सीता को कभी छुआ नहीं जी....अपनी बहन के अपमान के लिये पूरा कुल दाव पर लगा दिया जी.....!!!

अरे भाई...माता सीता को ना छूने का कारण उसकी भलमनसाहत नहीं बल्कि कुबेर के पुत्र "नलकुबेर" द्वारा दिया गया श्राप था..!!!

कभी लोग ये कहानी सुनाने बैठ जाते हैं कि एक मां अपनी बेटी से ये पूछती है कि तुम्हें कैसा भाई चाहिये..बेटी का जवाब होता है..रावण जैसा... जो अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिये सर्वस्व न्योंछावर कर दे...

भद्रजनो..ऐसा नहीं है....
रावण की बहन सूर्पणंखा के पति का नाम विधुतजिव्ह था..जो राजा कालकेय का सेनापति था..जब रावण तीनो लोको पर विजय प्राप्त करने निकला तो उसका युद्ध कालकेय से भी हुआ..जिसमे उसने विधुतजिव्ह का वध कर दिया...तब सूर्पणंखा ने अपने ही भाई को श्राप दिया कि, तेरे सर्वनाश का कारण मै बनूंगी..!!

कोई कहता है कि रावण अजेय था...
जी नहीं.. प्रभु श्री राम के अलावा उसे राजा बलि, वानरराज बाली , महिष्मति के राजा कार्तविर्य अर्जुन और स्वयं भगवान शिव ने भी हराया था..!!

रावण विद्वान अवश्य था, लेकिन जो व्यक्ति अपने ज्ञान को यथार्थ जीवन मे लागू ना करे, वो ज्ञान विनाश कारी होता है...रावण ने अनेक ऋषिमुनियों का वध किया, अनेक यज्ञ ध्वंस किये, ना जाने कितनी स्त्रियों का अपहरण किया..यहां तक कि स्वर्ग लोक की अप्सरा "रंभा" को भी नहीं छोड़ा..!!

एक गरीब ब्राह्मणी, "वेदवती" के रूप से प्रभावित होकर जब वो उसे बालों से घसीट कर ले जाने लगा तो वेदवती ने आत्मदाह कर लिया..और वो उसे श्राप दे गई कि तेरा विनाश एक स्त्री के कारण ही होगा..!!!

मै रावण को सिर्फ इसलिये अपना ईष्ट नहीं मान सकता कि वो एक ब्राह्मण था..मेरे इष्ट कर्म प्रधान है..ना कि मेरी जाति प्रधान..!!!

अपने आराध्यों मे जाति ढूंढना छोड़िये..

*जरुरी है अपने जेहन मे राम को जिन्दा रखना*,
*क्यूंकी सिर्फ पुतले जलाने से रावण नही मरा करते*

Thursday, October 6, 2016

Maids in Delhi



Placement Services For Maids (For Employers)
1: Om Sai Placement
Ashram (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +918860901349
Ph: +919311460952

2: Kaveri Placement Service
Burari (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +918285947255

3: The House Care
Govind Puri-Kalkaji (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +919811649789
Ph: +919999331218

4: Annu Enterprises
Kotla Mubarakpur (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +919821522098
Ph: +919540264570
Ph: +919555522098

5: Naaz Maid & Nurses Beauro
Sagarpur West (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +919599715787

6: Samresh Placement
Rani Bagh (Also Caters  in Bank Enclave)
Ph: +919289824404
Ph: +919212067723

7: Sri Krishna Placement Services
Palam Vihar (Also Caters  in Bank Enclav

  

Saturday, October 1, 2016

दुर्गा पाठ - रामचरितमानस में

जो पुण्य फल संपूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ से मिलता है, उतना ही फल श्रीरामचरितमानस की इन पंक्तियों के भाव सहित पाठ से मिलता है -

http://www.youtube.com/watch?v=FcQdBiBYsDQ&feature=youtube_gdata_player

दुर्गा पाठ - रामचरितमानस में

कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ चाह कर भी, समय अभाव अथवा संस्कृत के ज्ञान की कमी के कारण नहीं कर पाते हैं। उनके लिए कलिपावनावतार युगद्रष्टा गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में ६ चौपाई और १ दोहे में समाहित किया है।
 
जय जय जय गिरिराज किशोरी। जय महेश मुख चंद्र चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव बेद नहिं जाना॥
भव भव विभव पराभव कारिनि। बिश्व बिमोहनि स्वबश बिहारिनि॥
 
दो०-पतिदेवता सुतीय महँ, मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस शारदा शेष॥
 
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनि त्रिपुरारि पियारी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥