Tuesday, June 13, 2017

Free treatment

एक विशेष जानकारी 

            फ्री 

राजस्थान में उदयपुर शहर से बीस किमी दूर उमरड़ा एक गांव है ,वहां पर एक पैसिफिक नाम का होस्पिटल है जहां पर हर तरह की बीमारी का निशुल्क ईलाज व आपरेशन किया जा रहा है ,चाहे इलाज एक रूपये से दस लाख रूपये तक का ही क्यों ना हो ,पूर्णरूप से निशुल्क है ,वहां मरीज़ के साथ मरीज की देखभाल करने वालो को रहने व खाने पीने की व्यवस्था भी निशुल्क है ।
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भी एक बहुत बड़ा धर्म का कार्य है ,कृपया इस धर्म के कार्य को करके पुण्य कमाएँ । पेसिफिक होस्पिटल में हर  तरह की बिमारी का निशुल्क इलाज व आपरेशन किया जा रहा है , अधिक से अधिक बीमार भाई बहन लाभ लेवे।
वहां एक रूपये से करोड़ रूपये तक का इलाज पूरा निशुल्क है ,आपरेशन भी निशुल्क है !
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पेसिफेिक इंस्टीट्युट आफ मेडिकल सांईसेज
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Pacific institute of Medical Sciences
{मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया के द्वारा मान्यता प्राप्त}
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विश्व प्रसिद्ध चिकित्सकों द्वारा अन्तराष्ट्रिय स्तर की चिकित्सा सेवाएँ
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अम्बुआ रोड़ ,गांव उमरड़ा, तहसिल गिर्वा, उदयपुर 313015(राजस्थान)
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भर्ती, जांच, चिकित्सा, आपरेशन, जेनेरिक दवाईंयाँ निशुल्क उपलब्ध हैं।
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*आधुनिकतम उपकरण
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*दवाईंया निशुल्क
*सभी आपरेशन निशुल्क
*सभी तरह की जाँचे निशुल्क
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*ओपीडी सुविधा
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*वार्ड/आंतरिक सुविधा,
*माईनर /मेजर ओटी
*फिजियोथेरेपी
*प्रयोगशालाएं
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{24 घण्टे इमरजेन्सी सेवांए
प्रतिदिन 8 से 10 आपरेशन
रविवार छोड़कर}
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:~होस्पिटल के 
सम्पर्क नम्बर:~
09352054115
09352011351
09352011352
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कृपया सभी ग्रुपों में शैयर किजिए ।
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Monday, May 22, 2017

बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे

*बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे*
          
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है...
कहीं पर फल है तो कहीं आटा-दालें है,
कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,
फलों की ही बात ले लो...
 
 
आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,
कहीं दाल में काला है,
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती,
 
 
कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
 
 
सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़,
आटे में नमक तो जाता है चल,
पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,
अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,
 
 
गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,
कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है,
कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,
किसी के दांत दूध के हैं,
तो कई दूध के धुले हैं,
 
 
कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है,
तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है,
किसी को छटी का दूध याद आ जाता है,
दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है,
और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है,
 
 
शादी बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए,
और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है,
और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,
 
 
कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,
किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है...
कभी कोई चाय-पानी करवाता है,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,
तो सभी के मुंह में पानी आता है,
 
भाई साहब अब कुछ भी हो,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है,
जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब अपनी-अपनी बीन बजाते है,
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है,
सभी बहरे है, बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें हैं...
 
ये गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं...
सच पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं.

Tuesday, January 31, 2017

गंधी वृक्ष

१- •••गंधी वृक्ष•••

भाईसाहब क़स्बे के सबसे विशाल छायादार दरख़्त को जड़ से उखाड़ फेकने के भीम कार्य को सम्पन्न करने में व्यस्त थे। वे चिढ़े हुए, ग़ुस्से में दिखाई दे रहे थे।
भाईसाहब अपने परिवार की पिछली तीन पीढ़ियों के कष्ट का कारण इस पेड़ को मानते थे। वे पूरी शक्ति से वृक्ष की जड़ों पर प्रहार कर रहे थे किंतु वह वृक्ष इतना ज़िद्दी था की वह गिरने को तैयार ही नहीं था। पेड़ को गिरता ना देख भाईसाहब अपने को ठगा सा महसूस कर रहे थे।
लोगों का मानना था की इस वृक्ष की जड़ें पूरे क़स्बे में फैली हुई हैं, या यूँ कहें कि हमारा पूरा क़स्बा ही इस पेड़ की जड़ों पर बसा हुआ था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
गाँव के पुराने लोग बताते हैं की ये वृक्ष अनेकों बार प्राकृतिक प्रकोप का और विकृति के कोप का शिकार हुआ था, किंतु इसके बाद भी ये धराशायी नहीं हुआ।
इस वृक्ष से एक अजीब सी सम्मोहित करने वाली गंध निकलती थी जिससे लोग इसे गंधी वृक्ष कहने लगे थे। इसकी एक और विशेषता थी की यह ठंड,गर्मी, बरसात हर मौसम में सदा हरा भरा रहता था। आज़ादी से पहले कई अंग्रेज़ वैज्ञानिकों ने इसका कारण जानने के लिए वृक्ष की जड़ों को खोद डाला, किंतु इसकी जड़ें मानो पाताल तक पहुँची हुई सी दिखाई देती थीं। अंग्रेज़ वैज्ञानिकों ने कई बार उसे काट के फेंक दिया किंतु हर बार वह दोगुनी गति से, पहले की अपेक्षा अधिक विस्तार लेते हुए फिर से खड़ा हो गया था।
पुराने लोग बताते हैं, वृक्ष की शीतलता से घबराकर ही अंग्रेज़ों ने हमारा क़स्बा छोड़ दिया था। और तब से अंग्रेज़ों के यहाँ काम करने वाले हमारे क़स्बे के कुछ लोग बेरोज़गार हो गए थे, वे अपनी दुर्दशा की वजह इस वृक्ष को बताने लगे, वृक्ष की शीतलता को वे भीषणता कहने लगे।
वृक्ष अपनी विलक्षणता के कारण पूरे क़स्बे के विश्वास का केंद्र हो गया था, लोग उसकी पूजा करते, मन्नत माँगते, लोगों द्वारा अपनी इच्छापूर्ति के लिए बांधे गए रंगबिरंगे धागों से वो पेड़ अटा पड़ा था। कुछ उसे काट के अपने घर बना लेते ,तो कोई उसकी लकड़ीयों पे अपनी रोटियाँ सेंक लेता।
उस वृक्ष की एक विशेषता और थी, जहाँ उसकी डालियों पर संसार भर की सभी प्रजातियों के पक्षियों ने अपने घोंसले बना लिए थे वहीं उसकी छाया में सभी जातियों के मनुष्यों ने अपने घर बना छोड़े थे। कुछ लोग पत्थर मारके उसपर लगने वाले फलों को तोड़ते, तो कोई उसकी लकड़ियों को जला के उसकी आग सेंकता।
कुल मिला के वो पेड़ पूरे क़स्बे के सत्कार का ही नहीं तिरस्कार का केंद्र भी था। हमारे क़स्बे में उस पेड़ को लेके मिली जुली भावनाएँ थीं, कुछ उसे कल्याणकारी तो कुछ उसे अकल्याणकारी मानते थे।
मैं भाईसाहब के पास पहुँचा, मेरे मन में उनके लिए बेहद आदर था मैं उनके जीवट का, आत्मविश्वास, अथक परिश्रम की विकट क्षमता का प्रशंसक था। किंतु गाँव के बुज़ुर्ग उनके प्रति मेरे आदर भाव को आस्था से उपजे आदर की नहीं, आतंक से उपजे आदर की श्रेणी में रखते थे।
भाईसाहब मुझे पसंद करते थे, मुझे देख मुस्कुरा के बोले.. महाबली भीम हो या दुर्योधन, कंस हो या दस हज़ार हाथियों की ताक़त वाला दु:शासन, यहाँ तक कि हनुमान जी को भी मैंने धराशायी होते देखा है, किंतु ये गंधी पेड़ है की गिरता ही नहीं। पिछले कई सालों से लगातार इसपर चोट की जा रही है। इसे काटा गया पीटा गया , यहाँ तक कि जलाकर राख भी कर दिया। लेकिन ये ख़त्म होने जगह और लहलहाने लगा।
मुझे इसकी एक और विशेषता की जानकारी हाल ही में हुई, की इसकी राख, खाद का काम करती है।जैसे रक्तबीज के रक्तकण समस्या थे वैसे ही इसके राखकण एक विकट समस्या हैं। ये तो गीता की आत्मा से ज़्यादा शक्तिशाली है, ना इसे कोई मार सकता है, ना जला सकता है, ना काट सकता है, ना गीला कर सकता है।
मैंने कहा भाईसाहब जितना समय आपने इसे मिटाने के लिए ख़र्च किया उतना समय यदि आप नए पेड़ लगाने में ख़र्च करते तो अभी तक पूरा का पूरा जंगल खड़ा हो गया होता। और वैसे भी जिस पेड़ ने हमारी रक्षा की है, उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
भाईसाहब बोले, तुम नहीं समझोगे, इसकी छाया में कोई दूसरा पेड़ बढ़ ही नहीं सकता। और बढ़ भी गया, तो उसे वो महत्व नहीं मिलेगा जो इस गंधी को मिलता है।
इस गंधी के कारण हम नहीं हैं, बल्कि हमारे कारण ही ये फल फूल रहा है। अपने परदादे ही इसे आफ़्रिका के जंगलों से यहाँ लाए थे। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था की ये पेड़ पूरे क़स्बे में अपनी जड़े जमा लेगा।
ख़ैर जो हुआ उसे बदला तो जा नहीं सकता, लेकिन भुलाया तो जा सकता है। पुरखों की चूक के कारण हम मूर्ख माने जाएँ, ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए मैंने अब इसे मिटाने का प्लान छोड़ दिया है। अब इसे बर्बाद नहीं बदनाम किया जाएगा । हत्या से अधिक घातक चरित्र हत्या होती है, इसलिए इसके गुणों को ही इसका दोष बताया जाए ताकि लोग इसकी छाया से भी दूर रहें । इसकी गंध को दुर्गन्ध साबित करने की देर है लोग स्वयं ही इससे किनारा कर लेंगे। हमारे परिवार की बेरोज़गारी और तमाम तकलीफ़ों का कारण यही  पेड़ है। इसने हमारी ज़मीन पर अपनी जड़े जमाई हैं, तो अब हम इसकी जड़ों पर अपनी ज़मीन तैयार करेंगे। भाईसाहब अचानक घोषणात्मक स्वर में बोले, अब से हमारा ये क़स्बा गंधीग्राम नहीं नंदीग्राम के नाम से जाना जाएगा। नाम परिवर्तन के लिए आज से बेहतर कोई और दिन हो ही नहीं सकता, क्योंकि आज वही दिन है जब इस पेड़ की राख उड़के पूरे क़स्बे के ज़र्रे ज़र्रे में फैल गई थी। 
भाईसाहब ने शंकित भावुकता से मुझसे पूछा, इस परिवर्तन में क्या तुम मेरे साथ हो ? 
मैंने उन्हें आश्वस्थ करते हुए कहा की आप निश्चिन्त रहें भाईसाहब, हम सामान्य जन हैं, बदलाव नहीं बर्दाश्त ही हमारा भाग्य है। हम ग़रीब लोग हैं ,हमें नाम से क्या मतलब हमें तो काम से मतलब है। इस सच्चाई को हम जानते हैं की नाम बदलने से नियति नहीं बदलती। सो सुगंध हो या दुर्गन्ध इस भूमि को तो हम छोड़ने से रहे । अब ये भूमि ही हमारा भाग्य है, या कह लें हमारे भाग्य में यही भूमि है.. राम जाने।
आप बड़े हैं, पढ़े लिखे हैं, भूत और भविष्य के द्रष्टा ही नहीं सृष्टा भी हैं और हम वर्तमान की छोटी छोटी समस्याओं से जूझने वाले आमजन। हमारे बुज़ुर्गों ने अपने दुःख को सुख में बदलने का अचूक नुस्ख़ा बताया था, सो उसी का ईमानदारी से पालन करते हुए जीवन बिता रहे हैं, इसलिए हर परिस्थिति में आनंद रहता है।
भाईसाहब ने उत्सुक हो मुझसे कहा..क्या उस आनंदमंत्र को तुम मुझसे साझा कर सकते हो ? मैंने उत्साहित कंठ से उस मंत्र का सस्वर पाठ किया..
"जहि विधि राखे राम तहि विधि रहिए।
बड़ा आदमी जो भी बोले हाँ जू हाँ जू कहिए।।"~आशुतोष राणा 



Thursday, January 26, 2017

शिव, शिवलिंग और जुड़े अनुष्ठान

🚩 *शिव, शिवलिंग और जुड़े अनुष्ठान* 🚩


*शिव कौन है?  शिव को एक इंसान के रूप  बनाया गया था, या भारतीय प्राचीन ऋषियों द्वारा मानव जाति के लिए इस ब्रह्मांडीय चेतना को समझने के लिए  हम  प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करते हैं:*

*1.गंगा नदी सिर से बह रही है -* जिसका अर्थ है; किसी भी व्यक्ति, जिसका शुद्ध विचार 365 दिनों के लिए एक सहज निर्बाध ढंग से व्यक्त किया जा रहा है; और जो कोई इस तरह के प्रवाह में एक डुबकी लेता है, दैवीय शुद्ध हो जाता है।


 *2 माथे पर आधा चाँद -* जिसका अर्थ है; मन और अनंत शांति के साथ चित्त संतुलन।

*3.तीसरा नेत्र*  जिसका अर्थ है; जो अमोघ अंतर्ज्ञान की शक्ति के अधिकारी और भौंहों के मध्य से ब्रह्मांड को अनुभव-दर्शन करने की क्षमता है।

*4. गले में नाग -* जिसका अर्थ है; एकाग्रता की शक्ति और सांप की तीव्रता के साथ ध्यान में तल्लीन।

*5. शरीर राख में लिपटे -* किसी भी क्षण में मृत्यु के आगमन के बारे में  मनुष्य को भूल नहीं।

*6. शिव द्वारा त्रिशूल की पकड़ -* जिसका अर्थ है; ब्रह्मांड सर्वव्यापी परमात्मा्  की शक्ति द्वारा आयोजित किया जाता है और यह ब्रह्मांड मौलिक तीन क्षेत्रों (भौतिक, सूक्ष्म और कारण) में विभाजित है; जो अस्तित्व के आयाम हैं।

*7. डमरू  त्रिशूल से बंधा -* जिसका अर्थ है्; स्पंदन इस पूरे ब्रह्मांड की प्रकृति में है और सब कुछ आवृत्तियों में भिन्नता से बना है; सभी तीन क्षेत्र विभिन्न आवृत्तियों के बने होते हैं और ब्रह्मांडीय चेतना द्वारा प्रकट, एक साथ बंधे हैं।

*8. शिव ऋषियों और राक्षसों के साथ समान रूप से  हैं -*जिसका अर्थ है; निरपेक्ष चेतना या परमात्मा सभी आत्माओं का एकमात्र स्रोत है, इस प्रकार, अपने सभी बच्चों को प्यार करता है। हमारे कर्म हमें असुर या देवता बना रहे हैं।


*9. शिव के साथ नशा -*जिसका अर्थ है; शिव  (कूटस्थ चेतना) के साथ एक आत्मा के मिलन के समय में चमत्कारिक नशा, शराब की बोतलों के कई लाख से अधिक है।

*10 कैलाश शिव का वास है -* जिसका अर्थ है; शांत वातावरण में आध्यात्मिकता का घर है। शिव अकेले हिंदुओं के लिए नहीं हैं।

*11. पार्वती शिव की पत्नी हैं -* प्रकृति और ब्रह्मांडीय चेतना सदा एक दूसरे से विवाहित हैं। दोनों एक दूसरे से सदा अविभाज्य हैं। प्रकृति और परमात्मा का नृत्य एक साथ, क्योंकि, पूर्ण निरंतर चेतना (परम सत्य) ब्रह्मांडीय चक्र की शुरुआत में द्वंद्व पैदा करते हैं।


*12. शिव योगी हैं -* वह निराकार सभी रूपों में है। समाविष्ट आत्मा ( जीव), योग के विज्ञान के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकता को प्राप्त करने के लिए है। योग ही उसका  सिद्धांत है।


*13. ज्योतिर्लिंग ही शिव का प्रतीक है -*लिंग एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ "प्रतीक" होता है। ब्रह्मांडीय चेतना भौंहों के मध्य में गोलाकार प्रकाश के रूप में प्रकट होती है। यह आत्मबोध या आत्मज्ञान के रूप में कहा जाता है। समाविष्ट आत्मा प्रकृति के द्वंद्व और सापेक्षता की बाधाओं को पार करती है और मुक्ति को प्राप्त होती है।


*14. शिवलिंग पर दूध डालना -* सर्वशक्तिमान भगवान से प्रार्थना करना ; भौंहों के मध्य में, मेरे अंधकार को दूधिया प्रकाश में बदलना।शिवलिंग आमतौर पर काला इसलिए होता है क्योंकि साधारण मनुष्य के भ्रूमध्य में अन्धकार होता है जिसको दूधिया प्रकाश में बदलना ही मानव का वेदानुमत सर्वोत्तम कर्म है। इसका गीता में भी उल्लेख है।


*15. शिवलिंग पर धतूरा  प्रसाद -* भगवान से प्रार्थना, आध्यात्मिक नशा करने के लिए अनुदान।


*16. शिव महेश्वर हैं -* शिव परमेश्वर ( पारब्रह्म ) नहीं है,  क्योंकि परम चेतना अंतिम वास्तविकता है जो सभी कंपन से परे है। कूटस्थ चैतन्य एक कदम पहले है।


*17. नंदी शिव के वाहन के रूप में -* सांड धर्म का प्रतीक है। इस जानवर में लंबे समय तक के लिए बेचैनी के बिना शांति के साथ स्थिर खड़े़े रहने की अद्वितीय  और महत्वपूर्ण विशेषता है। स्थिरता - आध्यात्मिकता का वाहन है।


*18. बाघ की छाल का आसन -* प्राणिक प्रवाह का भूमि में निर्वहन रोकना आवश्यक।
19. राम और कृष्ण शिव भक्त - जब आकार में निराकार अवतरित होता है, मनुष्य के लिए अपनी असली पहचान स्थापित करता है।🚩
*शिवोहम्* 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

क्यों धरा हनुमान जी ने पंचमुखी रूप

क्यों धरा हनुमान जी ने पंचमुखी रूप

श्रीराम और रावण युद्ध में भाई रावण की मदद के लिए अहिरावण ने ऐसी माया रची कि सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई। तब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में पाताल लोक ले गया। इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया। हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे और द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात मकरध्वज से युद्घ कर उसे परास्त किया। जब हनुमानजी पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम और लक्ष्मण बंधक अवस्था में थे। हनुमान ने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना था। रहस्य पता चलते ही हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरूड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। सारे दीपकों को बुझाकर उन्होंने अहिरावण का अंत किया।
जय श्री हनुमान

मौनी अमावस्या27 जनवरी 2017

*मौनी अमावस्या27 जनवरी 2017*

 मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह दिन एक संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ और पावन अवसर बन जाता है इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है. इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है अत: इस अमावस्या का महत्व और बढ़ जाता है. इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों में स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.

*मौनी अमावस्या पर मौन व्रत महत्व*

इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखने का भी विधान रहा है. इस व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए. धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है. कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं. वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है. कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है.

इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए. वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है. मौनी अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद मौन व्रत रखकर एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए. इससे चित्त की शुद्धि होती है. आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है. मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति स्नान तथा जप आदि के बाद हवन, दान आदि कर सकता है. ऎसा करने से पापों का नाश होता है. इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल मिलता समान है.

माघ मास की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व   इस मास में होता है. इस मास में यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं. समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों के मध्य संघर्ष में जहाँ-जहाँ अमृत गिरा था उन स्थानों पर स्नान करना पुण्य कर्म माना जाता है.

*मौनी अमावस्या महात्म्य*

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है. स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें.

इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें. इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है. इसके बाद व्यक्ति को इस दिन ब्रह्मदेव तथा गायत्री का जाप अथवा पाठ करना चाहिए. मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए. दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिये !


Tuesday, January 24, 2017

माँ

Beautiful poem. Unknown poet. 

लेती नहीं दवाई "माँ",
जोड़े पाई-पाई "माँ"।

दुःख थे पर्वत, राई "माँ",
हारी नहीं लड़ाई "माँ"।

इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई "माँ"।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई "माँ" ।

जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई "माँ" ।

बाबू जी तनख़ा लाये बस,
लेकिन बरक़त लाई "माँ"।

बाबूजी थे सख्त मगर ,
माखन और मलाई "माँ"।

बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई "माँ"।

नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,
मां जी, मैया, माई, "माँ" ।

सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई  "माँ" ।

घर में चूल्हे मत बाँटो रे,
देती रही दुहाई "माँ"।

बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ-साथ मुरझाई "माँ" ।

रोती है लेकिन छुप-छुप कर,
बड़े सब्र की जाई "माँ"।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई "माँ" ।

बेटी रहे ससुराल में खुश,
सब ज़ेवर दे आई "माँ"।

"माँ" से घर, घर लगता है,
घर में घुली, समाई "माँ" ।

बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई "माँ" ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई "माँ"।

घर के शगुन सभी "माँ" से,
है घर की शहनाई "माँ"।

सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई "माँ".
😳😳😳😳
🙏🙏🙏🙏

Thursday, January 12, 2017

Sesquipedalian Expressions

*Sesquipedalian Expressions !* It's fun for English lovers.  Try to guess before scrolling! 

1. Scintillate, scintillate asteroid minute. 


_Twinkle, twinkle little star_.

2. Members of an avian species of identical plumage congregate.

_Birds of a feather flock together_

3. Surveillance should precede saltation.

_Look before you leap_

4. It is fruitless to become lachrymose over precipitately departed lactose fluid.


_Don't cry over spilled milk_


5. Freedom from encrustation of grime is contiguous to divinity.


_Cleanliness is next to godliness_

6. The stylus is more potent than the claymore.


_The pen is mightier than the sword_

7. It is fruitless to attempt to indoctrinate a superannuated canine with innovative maneuver.


_You can't teach an old dog new tricks_

8. Eschew the implement of correction and vitiate the scion.


_Spare the rod and spoil the child_

9. The temperature of aqueous content of an unremittingly ogled saucepan does not reach 212 fahrenheit.


_A watched pot never boils_

10. Neophyte's serendipity.


_Beginner's luck_

11. Male cadavers are incapable of yielding any testimony.


_Dead men don't talk_

12. Individuals who make their abode in vitreous edifices would be advised to refrain from catapulting petrous projectiles.


_People who live in glass houses shouldn't throw stones_


13. All articles that coruscate with resplendence are not truly auriferous.


_All that glitters is not gold_

14. Where there are visible vapors having their province in ignited carbonaceous material there is conflagration.


_Where there's smoke there's fire_

15. Sorting on the part of mendicants must be interdicted.


_Beggers can't be choosers_

16. A plethora of individuals with expertise in culinary techniques dilapidates the potable concoction produced by steeping comestibles.

_Too many cooks spoil the broth_

17. Exclusive dedication to necessary chores without interludes of hedonistic diversion renders john a hebephrenic fellow.


_All work and no play makes Jack a dull boy_

18. A revolving lathic conglomerate accumulates no diminutive glaucous syrophytic plants.


_A rolling stone gathers no moss_

19. The person with the ultimate cachinnation possesses, thereby, the optimal cachinnation.


_He who laughs last, laughs best_

20. Missiles of ligneous or petrous consistency have the potential of fracturing my osseous structure but appellations will eternally be benign.


_Sticks and stones may break my bones but words will never hurt me_

21. Pulchritude possesses solely cutaneous profundity.


_Beauty is only skin deep_

22. You are cordially invited to the theological place of eternal punishment.


_GO TO HELL !_
😊😉😄

Monday, January 2, 2017

Shivpuran

The Shiv Mahapuran, translated in English by Prof. J. L. Shastri has been made available for the sangat. It is available on http://www.gurujimaharaj.com/shivpuran-en.html in 28 parts for easy reading.