Monday, May 9, 2016

मैं परशुराम बोल रहा हूँ...

मैं परशुराम बोल रहा हूँ...
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मैं, तुम्हारा पूर्वज,
परशुराम बोल रहा हूँ...
अपने जीवन के कुछ,
रहस्य खोल रहा हूँ ..../१/

माँ रेणुका, पिता जमदग्नि
ये सब जानते हैं
विष्णु का छठा अवतार
मुझे सब मानते हैं .../२/

मैं भृगु वंश में जन्मा
पितामह त्रिकालदर्शी थे
भृगुसंहिता के प्रणेता
दिव्यदृष्टि वाले महर्षि थे,,/३/

पांच भाइयों में सबसे छोटा
घर भर का दुलारा था
माँ- बाप ने 'राम' कहा
जग ने परशुराम पुकारा था.../४/

मेरे आगमन का ध्येय विशेष
मैं विष्णु का आवेशावतार था
मिथ्या दंभ से धरा तप्त थी
मेरा कर्म उद्दंडियों का संहार था.../५/

नानी के छल के कारण
मैं ब्राह्मण कुल में जन्मा था
ब्राह्मण होकर भी क्षत्रियत्व
मेरी रगों में पनपा था.../६/

परम विदुषी माँ रेणुका ने
सर्वप्रथम मुझे ज्ञान दिया था
आज्ञापालन और प्रकृति प्रेम का
बेशकीमती संज्ञान दिया था../७/

विश्वामित्र मेरे परम गुरु
ऋचीक आश्रम विद्यास्थली रहा
शिव ने सिखाया रण मुझे
इसीलिए तो मैं महाबली रहा../८/

महामनाओं की कृपा मुझ पर
अनंत और अनवरत रही
दिव्य शस्त्र और दिव्य मंत्र मिले
तन पर अभेद परत रही.../९/

विद्युदभि नामक विशाल फरसा
श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच,
शिव गुरु ने प्रदान किया था
स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु
के साथ साथ महादेव ने मुझे
सहृदयता से विद्यादान दिया था../१०/

चक्रतीर्थ में मेरे कठिन तप ने
विष्णु को प्रसन्न कर दिया था
उन्होंने मुझे कल्पान्त पर्यन्त
भूलोक पर रहने का वर दिया../११/

क्षणिक कमजोरी के वशीभूत
माँ ने एक पाप किया था
परपुरुष पर मोहित होने का
पिता ने बहुत संताप किया था../१२/

पितृ आदेश से मैंने फिर
माँ-भ्राताओं का वध कर डाला
आज्ञा पालन से अभिभूत पिता ने
मुझे स्नेहिल बाहों में भर डाला../१३/

कोमल हृदय पिता ने मुझे
बहुमूल्य वरदान दिया था
मेरी याचना पर माँ-भ्राताओं को
फिर से जीवन दान दिया था.../१४/

हैहय वंशाधिपति का‌र्त्तवीर्यअर्जुन
सहस्त्रार्जुन कहलाया था
दत्तात्रेय को तप से प्रसन्न कर
हजार बाहुओं का वर पाया था.../१५/

बड़ी शक्ति ने सहस्त्रार्जुन को
स्वेच्छाचारी बना दिया था
उसने वो हर काम किया
जिसके लिए उसे मना किया था .../१६/

सहस्त्रार्जुन के आश्रम प्रवास पर
पूज्य पिता ने उपकार किया था
सैन्यबल सहित राजा का
भरपूर अतिथि सत्कार किया था ../१७/

कामधेनु कपिला के प्रताप से
धनधान्य भरपूर था
आश्रम का वैभव देखकर
राजा का दर्प चकनाचूर था .../१८/

कपिला को हड़प जाने को
सहस्त्रार्जुन ललचाया था
चोरी जैसे नीच कर्म पर
'प्रजापालक' उतर आया था .../१९/

इस बलात हरण का तब मैंने
पुरजोर प्रतिकार किया था
फरसे से हजार भुजाएं काट डाली
लुटेरे का संहार किया था ---/२०/

मेरी अनुपस्थिति में राजपुत्रों ने
ध्यानस्थ पिता की हत्या कर दी
इस कायरतापूर्ण कुकर्म ने मन में
ऐसे क्षत्रियों के प्रति जुगुप्सा भर दी .../२१/

माँ रेणुका सती हो गईं
पल में मैंने माँ- बाप खो दिए थे
इस अपूरणीय क्षति ने
भावी हाहाकार के बीज बो दिए थे ../२२/

मेरे जीवन का एकमेव ध्येय
मातृभूमि का उपचार करना था
फरसे के प्रहार से पापियों का
पापयुक्त दूषित जीवन हरना था.../२३/

इक्कीस बार भू को मैंने
पापीयों से विमुक्त किया था
जगत वन्दनीय धरा को
आततायी रक्त से सिक्त किया था ../२४/

अहा!! कैसा रक्तिम समय वह
कितना प्रचंड दौर था
दसों दिशाओं में त्राहि त्राहि का
खूब मर्मान्तक शोर था .../२५/

पांच सरोवर दूषित रक्त से
मैंने सराबोर किये थे
सहस्त्रार्जुन सुतों के रक्त से
पिता के श्राद्ध घनघोर किये थे .../२६/

अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर
अपनी शक्ति का जग को भान दिया
सप्तद्वीप युक्त भूमंडल
फिर महर्षि कश्यप को दान दिया .../२७/

महर्षि ऋचीक प्रकट हुए
उन्होंने मुझे शांत किया था
शस्त्र त्याग कर फिर मैंने
महेंद्र पर्वत पर विश्राम किया था .../२८/

मुझसे शस्त्र विद्या सीखने
कईं विभूतियाँ आती रहीं
भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसी हस्तियाँ
मुझसे ज्ञान पाती रहीं .../२९/

पशु-पक्षियों का और मेरा
आपस में बहुत प्यार था
उनके संग संततियों सा मेरा
प्रेमपूर्ण भावुक व्यवहार था .../३०/

काव्य से प्रेम था मुझे मैं,
शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र का रचनाकार रहा
मेरे द्वारा रचित परशुराम गायत्री
इच्छित फल पाने का अचूक आधार रहा.../३१/

स्त्री स्वातंत्र्य का पक्षधर मैं
मैंने बहु पत्नी विवाह पर आघात किया
अनसूया लोपामुद्रा के सहयोग से
नारी-जागृति-अभियान का सूत्रपात किया .../३२/

आज अक्षय तृतीया है
तुम मेरा जन्मदिन मनाओगे
मेरी जीवन गाथा
तुम सभी को सुनाओगे..../३३/

मेरा आशीष है तुमको
ज्ञानवान बनो विद्यादान करो
सुसुप्त पड़ी हैं शक्तियां
अपनी क्षमता की पहचान करो ..

जय परशुराम

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